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________________ सुधा टीका स्था० ७ सू० १४ सप्तस्वरनिरूपणम् દા ये चाण्डाला:= चण्डकर्माणः, मौष्टिकाः - मुष्टिः प्रहरणं येषां ते तथा, मुष्टिभिः महरणशीला इत्यर्थः तथा - मश्लाः, सेयाः - अधमजातीया मनुष्याश्च सन्ति, एभ्योऽन्ये च ये पापकर्माणः पापकर्मपरायणाः सन्ति, तथा च-ये गोघातकाः सन्ति, ये च चौराः सन्ति, ते सर्वे विषादस्वरमाश्रिता विज्ञेयाः ॥ १४ ॥ इति । अथैतेषां स्वराणां ग्रामान्, एकैकग्रामस्य मूर्च्छाच प्राह - ' एएसि णं सत्ताहं सराणं तभी गामा पण्णचा ' इत्यादिना ' कोडिमा य सौ सत्तमी मुच्छा' होते हैं, वे चाण्डाल होते हैं - चण्ड कर्म करनेवाले होते है-मौष्टिकमुष्टि से प्रहार करने के स्वभाववाले होते हैं. सेय-अधम जाति के - होते हैं, तथा इनसे भी भिन्न जो पापकर्म करने में परायण होते हैं, गाय की हत्या करनेवाले होते हैं, और जो चोर - परधनहरण करनेवाले - होते हैं वे सब निषाद स्वरवाले होते हैं- ऐसा जानना चाहिये ॥ ॥ १४ ॥ ॥ - ** अब सूत्रकार इन स्वरों के ग्रामों का और एक २ स्वर की मूच्र्छना का कथन करते हैं - इन सात स्वरों के तीन ग्राम कहे गये हैं- जैसेषड्ज ग्राम १ मध्यम ग्राम २ और गान्धार ग्राम ३. इनमें षड्ज ग्राम की सात मूच्र्छनाएँ कही गई है - जैसे-मङ्गी १, कचौरिया २, हरि ३, रजनी ४, सारकान्ता ५, सारसी ६ और शुद्ध षड़ज ७ ॥ १५ ॥ मध्यम ग्राम की सात मूर्छनाएँ इस प्रकार से है - उत्तरमन्दा १ रजनी २ उत्तरा ३ उत्तरासमा ४, समवक्रान्ता ५ सौवीरा ६ और अभीरु ७ ॥ १६ ॥ નિષાદ સ્વરવાળા મનુષ્યેા ચાંડાલ હાય છે—ભયંકરમાં ભય`કર કૃત્ય કર नारा होय छे, भौष्टिक ( भुट्ठी वडे अडार ४२नाश ) होय छे, सेय ( अधम'तिना) होय छे, तेयो लत लतना पायाभ ४श्वासां पराया होय छे,ગૌહત્યા કરનારા હૈય છે, અને પારકાના ધનનું અપહેરણુ કરનારા ચાર હાય છે. હવે સૂત્રકાર આ સ્વરાના ગ્રામનું અને પ્રત્યેક સ્વરની સૂનાનુ निश्याथुरे छे , या सात स्वरोमा नाम नीचे प्रमाणे छे – (१) पंडून ग्राम, (2) मध्यम ग्राभ भने (3) जान्धार ग्राम. षडून ग्रामनी सात भूछना अडी छे – (१) भग, (२) भैरवीया, (3) हरि, (४) २०४ जी, (3) सारान्ता, (१) सारसी अने (७) शुद्ध षड्ल. મધ્યમ ગ્રામની સાત મૂર્ચ્છનાઓ નીચે પ્રમાણે છે—(૧) ઉત્તરમન્દા, (२). २०४नी, (3), उत्तरा, (४) उत्तरासभा, (4) सभवान्ता, (९) सौवीरा मने (७) अलीरु.
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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