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________________ स्थानाशस्त्रे Yo छाया-अर्थो नर्थो २ हिंसा ३ कस्मात् ४ दृष्टिश्च ५ मृपा ६ असं ७ च । अध्यात्मं ८ मानो ९ मित्रं १० माया ११ लोमः १२ ऐर्यापथिकी १३ ।। इति । ॥ मु० ८ ॥ अथ आवविशेषरूपाणि क्रियास्थानानि प्राह मूलम् - पंत्र किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- आरभिया १, परिग्गहिया २, मायावत्ति ३, अपच्चक्खाणवत्तिया ४, मिच्छादंसणवतिया || मिच्छादिट्टियाणं नेरइयाणं पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तं जहा- आरंभिया जाव मिच्छादंसणवत्तिया ५। एवं सवेलि निरंतरं जाव मिच्छादिट्ठियाणं वेमाणियाणं । नवरं त्रिगलिंदिया मिच्छादिट्ठी न भणणंति, सेसं तहेव । १ । पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - काइया १ अहिगरणिया २ पाओसिया ३ पारितावणिया ४ पाणाइवायकिरिया था णेरड़या पंच एवं चेत्र जाव वैमाणियाणं २ पंच किरियाओ पण्णसाओ, तं जहा - दिट्टिया १ पुट्टिया २ पाडुच्चिया ३ सामंतोवणवाइया ४ साहत्थिया ६। एवं णेरड्याणं जान वैमाणियाणं क्रिया स्थानोंके बीच में हैं, परन्तु यहां पांच स्थानोंके अनुरोध से पांचही स्थान गृहीत हुए हैं । वे १३ क्रिपास्थान इस प्रकार से हैं "f अट्ठा हिंसा " इत्यादि । इन १३ क्रिया स्थानों में अर्थ अनर्थ आदि ये पांच दण्ड आये हैं । इन १३ क्रिया स्थानों से जीव वध होता है । सू० ८ ॥ પાચ સ્થાનોનો અધિકાર ચાલતા હૈાવાથી પાચ જ સ્થાન ગ્રહણ કરવામાં આવ્યાં છે તે ૧૩ ક્રિયસ્થાન નીચે પ્રમાણે છે- -- "" अट्ठा हिंसा " त्याहि ते तेर द्वियास्यानोभां अर्थ, अनय आदि આ પાંચ દડને તે સમાવેશ થયેલે જ છે. તે તેર ફ્રિયાસ્થાના વડે જીવवध थाय छे, ॥ सू. ८ ॥
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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