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________________ ५५३ सुधारीका स्था०७ १०४ संग्रहस्वरूपनिरूपणम् । अथ-पष्ठं संग्रहस्थानम्-आचार्योपाध्यायो गणे अनुत्पन्नानि अलब्धानि उपकरणानि वस्त्रपात्रादीनि सम्यक् एषणादि शुद्धया उत्पादयिता-उपार्जको भवतीति ६॥ सप्तमं तु-आचार्योपाध्यायो गणे पूर्वोत्पन्नानि पूर्वकालोत्पादितानि उपकरणानि-वस्त्रपात्रादीनि सम्पक संरक्षिता-प्रयत्नतो रक्षणकर्ता, संगोपिता वा. भवति, न तु असम्यक संरक्षिता संगोपिता भवतीति ७। एतद्वैपरीत्येव आचायोपाध्यायस्य सप्त असङ्मस्थानानि विज्ञेयानि । एतदेव रचयितुमाह "आयरिय उपज्झायस्त णं गणंसि सत्त असंगहट्ठाणा पण्णत्ता" इत्यादि। व्याख्याऽस्य संग्रहस्थानवैपरीत्येन वोध्येति ।। सू० ४ ॥ छठा स्थान इस प्रकारसे है-"आयरिय उवज्झाए गणंसि अणु.. प्पन्नोइं" इत्यादि-जो आचार्य उपाध्याय गणमें अलब्ध उपकरणोंकावस्त्र पात्रादिकोंका-एषणा शुद्धिसे उपार्जक होता है, वह आचार्य शिष्यका संग्राहक और ज्ञानादिका संग्राहक होता है। सातवां स्थान इस प्रकारसे हैं-" आयरियउवज्झाए " इत्यादिजो आचार्योपाध्याय पूर्वकालोत्पादित वस्त्र पात्रादि उपकरणोंका प्रयत्नपूर्वक रक्षण करता होता है, असम्यक् रूपसे उनका रक्षण करनेवाला नहीं होता है, ऐसा वह आचार्योपाध्याय शिष्यका संग्राहक और ज्ञानादिकोंका संग्राहक होता है, इन सातों संग्रह स्थानोंसे विपरीत जो स्थान हैं-वे सात असंग्रह स्थान हैं। यही बात "आयरिय उंच. जमायस्सणं गणसि सत्त असंग्गहट्ठाणो पण्णत्ता" इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है, यहांके पदोंकी व्याख्या संग्रहस्थान गत पदोंकी व्याख्यासे विपरीत होती है, ऐसा जानना चाहिये ॥ सूत्र ४ ॥ ७६ स्थान-“ आयरियउवज्झाए गणंसि अणुप्पन्नाई" त्याहि-२ આચાર્ય અલબ્ધ ઉપકરના (વસ્ત્ર પાત્રાદિકના) એષણા શુદ્ધિપૂર્વક ઉપાર્જક હોય છે, તેઓ શિષ્યને તથા જ્ઞાનાદિનો સંગ્રહ કરી શકે છે. - सातभु स्थान-"आयरिय उवज्झाए" त्याहि मायापाध्याय પૂર્વકાલત્પાદિત વસ્ત્ર, પત્રાદિ રૂપ ઉપકરણનું પ્રયત્નપૂર્વક રક્ષણ કરનારા હોય છે. તેઓ શિષ્યને અને જ્ઞાનાદિને સંગ્રહ કરી શકે છે સંગ્રહના આ સાત સ્થાન કરતાં જે વિપરીત પ્રકારના સ્થાને છે, તેમને અસંગ્રહના અથવા गाना विनाशनां स्थाना सभा नय..पात "आयरियउज्ज्ञा. यस्स णं गणंसि सत्त असंग्गहदाणा पण्णचा" या सूत्राट ४२वामा આવી છે. સંગ્રહના સ્થાને કરતાં અસંગ્રહનાં સ્થાને વિપરીત હોવાથી - સંગ્રહના સ્થાનના પદની વ્યાખ્યા કરતાં અસંગ્રહના સ્થાનનાં પદોની व्याच्या विपरीत सभरावी. ॥ सू. ४ ॥ स्था०-७०
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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