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________________ सुधा टीका स्था०५ उ०३ सू०१७ पञ्चविधसमितिनिरूपणम् २३९ च्छाया | उत्कलनीत्युत्कल-वृ इत्यर्थः । दण्ड उत्तलो यस्य सः, दण्डेन वा उत्कल इति विग्रहः । एवं राज्योत्कलादिष्वपि विग्रहो बोध्य इति । सू० १६ ॥ उत्कटोऽनन्तरमुत्रे पञ्चत्रिवः प्रोक्तः । स चासंयत एव । संयदस्तु समितिभिरेव उत्कटो भवतीति पञ्चविधाः समितीः प्राह मूलम् - पंच समिईओ पण्णत्ताओ । तं जहा - ईरियासमिई १ भासा समिई २ जाव परिद्वावणियाससिई ५ ॥ सू० १७ ॥ छाया - पञ्च समितयः मक्षप्ताः । तद्यथा - ईर्यासमिनिः १ भाषासमितिः २ यावत् परिष्ठापनिकासमितिः ५ ॥ भ्रू० १७ ॥ टीका- ' पंव समिईओ ' इत्यादि समितयः- सम्यक् = एकीभावेन इतयः = मतयः, शोभनैकाय परिणामत्रतश्रेष्ठा । तो इस पक्ष में उत्कल शब्दका अर्थ प्रवृद्ध होना है, इस तरह दण्ड से जो उत्कल है, वह अथवा दण्ड जिसका उत्कल है, वह दण्डोत्कल है । इसी तरह से राज्योकल आदि में भी विग्रह जानना चाहिये । सू० १६ । इस अनन्तर सूत्रमें जो यह उत्कट पांच प्रकारका कहा गया है, वह असंयतही होता है, तथा जो संघत होता है, वह तो समिति आदिसेही उत्कट होता है, अतः अन कार पांच समितियों का कथन करते हैं 'पंच समिईओ पण्णत्ताओ' इत्यादि सूत्र १७ ॥ टीकार्थ- समितियां पांच कही गई हैं जैसे-ईर्यातमिति र भाषासमिति २ यावत्परिष्ठापना समिति ५ एकीभाव से जो प्रवृत्तियां उनका नाम समिति है, शोभन एकाग्र परिणामवालेकी जो चेष्टाएँ हैं, वे उत्कल " सेवामां आवे तो तेना राज्य S उकल આ પદની સંસ્કૃત છાયા अर्थ ' अवृद्ध' थाय छे, तो तेना हो, उस પડે છે દડની અપેક્ષાએ જે ઉત્કલ છે તેને અથવા તેને દડાત્કલ કહે છે એ જ પ્રમાણે રાજ્યેત્કલ सभनवु ॥ सू. १६ ॥ આગલા સૂત્રમાં જે પાંચ પ્રકારના ઉત્કટ કહ્યા તેએ અસયત જ હોય છે. સયતા સમિતિ આદિની અપેક્ષાએ જ ઉત્કટ હાય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર यांश समितिमनु' उथन रे छे. "पच ससिईओ पण्णत्ताओ " त्याहिसमितियों पाथ ही है- (1) समिति, (२) भाषासमिति, (3) शेषष्या समिति, (४) माहान लाई मात्र निक्षेप समिति ने (4) परिક્ષાપનિકા સમિતિ. ܕ "L आदि पांच प्रा જેને દંડ ઉત્કલ છે આદિ વિષે પશુ
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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