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________________ स्थानास्त्रे सहे ४ विज्जुद ५ ॥ ५ ॥ जंबू मंदरस्त उत्तरकुराए कुराए पंच महा पण्णत्ता, तं जहा- नीलवंतदहे १ उत्तरकु२ चंद्र रावणदहे ४ मालवंत दहे ५ ॥ ६ ॥ सव्वे विणं वखापव्वया सीया सीओयाओ महाणईओ मंदरं वा पवने मंत्र जोयणसयाई उ उच्चतेणं पंच गाउयसयाई उच्णं ॥७॥ धायसंडे दीवे पुरत्थिमद्वेणं मंदरस्त पत्रवलपुरस्थिमेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं पंच वक्खारपव्यया पण्णत्ता, तं जहा - मालवंते, एवं जहा - जंबूदीवे तहा जाव पुक्रवरविपच्चत्थिमद्धे वक्खारा दहा य उच्चत्तं भाणियवं । समयसंत्ते पणं पंच भरहाई पंच एरवयाई एवं जहा चउडाणे विश्व उदेसे तहा एत्थ वि भाणियन्त्रं जाव पंच मंदरा पंच मंदरचूलियाओं, णत्ररं उसुयारा णत्थि ॥ सू० २४ ॥ 1:5 छाया - जम्बुद्वीपे त्री मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्ये सीताया महानद्या उत्तरे पर्वताः मतमाः नद्यथा- माल्यवान, १ चित्रकूट, २ पद्मकूटः, ३ afari, e gabe: 411211 संगत असंगनके सम्बन्ध के सूत्र सूत्रकारने पहिले कह दिये हैं, उनमें संगत अमंगन गन जो वस्तुविशेष कहे गये हैं, उनका व्यतिकर होना है, इस कारण अब सूत्रअनुपस्पा विशेषका कथन करते हैं વન અને આયન બ્યક સૂત્રની પ્રરૂપા સૂત્રકારે પહેલાં કરેલી सेवेनोम अपन विशेषभदेव भांगावे छे तेम ૨ ના થાવ તો મનુષ્યમાં જ સાવી શકે છે તેથી दो सुपर पोटाशेषेनु ध्यन रे -- .
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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