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________________ सुधा का स्था० ४ ० २ सू० ५८ कर्मवन्धस्वरूपनिरूपणम् ७०५ विपरिणामनोपक्रमश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-प्रकृतिविपरिणामनोपक्रमः १, स्थितिविपरिणामनोपक्रमः२, अनुभावविपरिणामनोपनमः ३, प्रदेशविपरिणामनोपक्रमः ४। चतुर्विधमल्पबहुत्वं पज्ञप्तम् , तद्यथा-प्रकृत्यल्पवहुत्वं १, स्थित्यल्पबहुत्वम् २, अनुभावाल्पवहुत्वं ३, प्रदेशाल्पबहुत्वम् ४ । चतुर्विधः संक्रमः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-प्रकृतिसंक्रमः १, स्थितिसंक्रमः २, अनुभावसंक्रमः ३, प्रदेशसंक्रमः ४ । चतुर्विध निधत्तं प्रज्ञप्तस् , तद्यथा-कृतिनिधत्तं १, स्थितिनिधत्तम् २, अनु. भावनिधत्त ३, प्रदेशनिधत्तम् ४ ।। चतुर्विधं निकाचितं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-प्रकृतिनिकाचितं १, स्थिति निकाचितम् २, अनुभावनिकाचितं ३, प्रदेशनिकाचितम् ४ ।। सू० ५८॥ प्रकृति विपरिणामोपक्रनस्थितिविपरिणामोपक्रम२ अनुभावविपरिणामो पक्रम ३ और प्रदेशविपरिणामोपक्रम ४ । अल्पबहुत्व चार प्रकार का कहा गया है, जैसे-प्रकृत्यल्पबहुत्व १, स्थित्यल्पयत्व २, अनुभावाल्पवहुत्व ३, और प्रदेशाल्पबहुत्व ४ । संक्रम चार कहा गया है, प्रकृति संक्रम १, स्थितिसंक्रम २, अनुभावसंक्रम३, और प्रदेशसंक्रम ४ । निधत्त चार प्रकारका कहा गया है, जैसे-प्रकृतिनिधत्त १, स्थिति निधत्त २, अनुभावनिधत्त ३, और प्रदेशनिधत्त ४ । निकाचित चार प्रकारका कहा गया है, प्रकृति निकाचित १, स्थिति निकाचित २, अनुभाव निकाचित ३, और प्रदेश निकाचित ४ । મોપકમ, (૨) સ્થિતિ વિપરિણામેપક્રમ, (૩) અનુભવ વિપરિણામપક્રમ અને (४) प्रदेश विपरिमा५४म. અલ્પબહુ ચાર પ્રકારનું કહ્યું છે--(૧) પ્રકૃત્ય૫ બહુત્વ, (૨) સ્થિત્યલ્પ १, (3) अनुभावा८५ प मन (४) प्रश६५ हुत्व सम२ ४ छ-(१) प्रकृति सभा, (२) स्थिति सभ, (3) भानुभाव सभ मन (४) प्रदेश सभ.. निधत्तना या२ ४.२ ४ा छ--(१) प्रतिनिधत्त, (२) स्थिति नियत्त, (3) मनुभाव निधत्त भने (४) प्रदेश निधत्त. नायितना या२ १२ ४ा छ-(१) प्रकृति नियित, (२) स्थिति नियत, (3) मनु निथित मन (४) प्रदेश निायित.
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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