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________________ सुधा टोका स्था०३३०२ सू०३७ पुरुषर्षकारनिरूपणम् द्ध्वा ३, 'जइत्ता'-इति जित्वा-युद्धे जयं प्राप्य ३, अजित्वा-जयमप्राप्य ३, पराजित्य-परपराजयं प्राप्य सुमना भवति, संभावितमहावित्तव्ययाद्यनर्थविनिमुंक्तत्वात् ३। 'नो चेय' इति-अपराजित्य-पराभवममाप्य मुमना भवतीत्यादि अपराजित्य" इन पदों के साथ भी ऐसा ही सुमना और दुर्मना और मध्यस्थ होनेके विषय का कालत्रय को लेकर कथन करना चाहिये, इन शब्दों का अर्थ इस प्रकार से है। निषिध बैठ करके, अनिषद्य नहीं बैठ करके, हत्वा-मार करके, अहत्वा नहीं मार करके, छित्वा छेदन करके, अछित्वा नहीं छेदन करके, उक्त्वा= पद वाक्यादि कह करके, अनुक्त्वा नहीं करके, भाषित्वा-भाषण करनेयोग्य किसीके साथ भाषण करके,अभाषित्वा नहीं भाषण करने योग्यके साथ नहीं भाषण करके, दत्त्वा-दे करके, अदत्त्वा-नहीं दे करके, भुक्त्वा-खाकरके, अभुक्त्वा नहीं खाकरके, लब्ध्वा-प्राप्तकरके, अलध्वा नहीं प्राप्त करके, पीत्वो-पीकरके, अपीत्वा नहीं पीकरके, सुप्त्वा सो करके, असुप्त्वा-नहीं सो करके, युद्ध्वा युद्ध करके,अयुध्वा युद्ध 'नहीं करके, जित्वा-जीतकर के, अजित्वा-नहीं जीत करके पराजित्यहार प्राप्त करके, अपराजित्य-पराजय प्राप्त नहीं करके कोई मनुष्य सुमना होता है, कोई दुर्मना होता है और कोई मध्यस्थ रहता है इस पराजित्य मने अपराजित्य मा पोनी साथे ५ सुमना, हुमना सन મધ્યસ્થ હોવાનું કથન ત્રણે કાળને અનુલક્ષીને કરવું જોઈએ. હવે આ પદોને અર્થ સ્પષ્ટ કરવામાં આવે છે – निषिद्य-मेसीन, अनिषिद्य-mai बिना, हत्त्वा-डीने, अहत्त्वा=३९या विना, छित्त्वा छहीने, अछिवा छेधा विना, उक्त्त्वा-५६, पाठ्य मामालीन, अनुकत्वा=नही मालीन, भाषित्वा साष ४२१॥ योग्य ना साथे सापy ४शन, अभाषित्वानही साप! ४२१॥ योग्य सेवा | यति साथै भाषा नही ४शन, दत्वा-माधान, अदत्वा=नही मापान, भुक्त्वा-माने, अभुक्त्वा नही पान, लब्ध्वा=पास ४ीने, अलब्ध्वा पास नही ४शन, पीत्वा पान, अपीत्वा पीया विना, सुप्त्वा-सून, असुप्त्वा-शयन नही शने, युद्ध्वा= युद्ध ४शन, अयुवा-युद्ध नही रीने, जित्वातीन, अजित्वा=नडी तान, पराजित्य-२ श्रास ४शने, अपराजित्य-५२४य प्राप्त नही ४शन, २ मधी ક્રિયાઓ કરીને કેઈ મનુષ્ય હર્ષિત થાય છે, કેઈ મનુષ્ય દુ.ખિત થાય છે અને કે મનુષ્ય મધ્યસ્થભાવમાં રહે છે, આ પ્રકારનું કથન ત્રણે કાળને
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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