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________________ सुघाटीका स्था०४ उ० १ सू० १० समेदादेव स्थितिनिरूपणम् छाया ४५९ " क्रोधश्व मानश्चानिगृहीतौ, माया च लोभथ प्रवर्द्धमानौ । चत्वार एते कृत्स्नाः कपायाः, सिञ्चन्ति मूलानि पुनर्भवस्य ॥१॥ इति, इति चतुर्थ्यनुपेक्षा ॥ ४ ॥ इति ध्यानचतुष्टयस्वरूपम् ॥ (०९) ध्यानाद् देवत्वमपि स्यादतो देवस्थिति सभेदामाह - मूलम्-चडविंहा देवाणं ठिई पण्णत्ता, तं जहा- देवे णाममेगे १, देवसिणाए णाममेगेर, देवपुरोहिए णाममेगे३, देवपजलणे णाममेगे ४ । चव्विहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा - देवे णामगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छेना, देवे णाममेगे छवीए सद्धिं संवासं गच्छेज्जा, छवी णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छेज्जा, छवी णाममेगे छवीए सद्धिं संवासं गच्छेज्जा॥सू०१०॥ छाया - चतुर्विधा देवानां स्थितिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा देवो नामकः १, देवस्नातको नामैः २, देवपुरोहितो नामकः ३, देवमज्वलनो नामकः ४ ! चतुमान, माया, और लोभ, ये चार कपाय पुनर्भव के मूल को सींचते हैं -४ इस प्रकार से यह ध्यान ध्यान चतुष्टय का स्वरूप है ॥ ३०९ ॥ ध्यान से देवपद की भी प्राप्ति जीव को होती है अतः - अब सूत्रकार सभेद से देवस्थिति का वर्णन करते हैं 44 हा देवाण ठिई पण्णत्ता " इत्यादि सूत्रार्थ - देवों की स्थिति चार प्रकार की कही गई है, जैसे- देव १ देवस्नातक २ देवपुरोहित ३ और देवप्रज्वलन ४ । संवास चार प्रकार का कहा गया ઈત્યાદિ—એટલે કે ક્રાધ, માન, માયા અને લાભ, આ ચાર કષાયે પુનઃવના મૂલનું સિંચન કરે-છે, આ પ્રકારની ભાવનાનું નામ જ અપાયાનુપ્રેક્ષા છે. આ પ્રકારે સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં ચતુર્વિધ ધ્યાનનું નિરૂપણ કર્યુ* છે, ॥ સૂ. ૯૫ ધ્યાનના પ્રભાવથી જીવને દેવપદની પણ પ્રાપ્તિ થાય છે. તેથી હવે સૂત્ર કાર દેવસ્થિતિના ભેદોનું નિરૂપણ કરે છે—— चव्हा देवाण ठिई पूण्णत्ता " त्याहि- 66 सूत्रार्थ-देवानी स्थिति और प्रारनी उडी घे - (१) हेव, (२) देवस्नात, (3) देवयुरोहित भने (४) देवप्रन्वसन,
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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