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________________ २९६ स्थानागस्त्र चत्वारि पुरुपजातानि प्रज्ञतानि, तद्यथा-शुद्धो नामैकः शुद्धः ?, चतुर्भङ्गी ४ा एवं परिणतरूपः, वस्त्राणि सप्रतिपक्षाणि । चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाशुद्धो नामैकः शुद्धमनाः, चतुर्भङ्गी ४, एवं संकल्पः यावत् पराक्रमः । (मु० ४) टीका-अथ पुरुपभेदनिरूपणाय त्रयोदशसूत्रीमाह-" चत्तारि वस्था " इत्यादि-शुद्ध-निर्मलतत्वादिरचितत्यात् स्फीतं वस्त्रं तदेव पुनरागन्तुक मलाभा. वाच्छुद्धमिति, यद्वा-पूर्व शुदमासीदधुनाऽपि शुद्धमेव, इति प्रथमो भङ्गः १। कहे गये हैं, शुद्ध शुद्ध १ शुद्ध अशुद्ध २ अशुद्ध शुद्ध ३ और अशुद्ध अशुद्ध ४ । इसी प्रका से शुद्ध अशुद्ध पदों के साथ परिणत और रूप शब्द को जोडकर बत्रों में चतुर्विधता कहनी चाहिये। इसी दृष्टान्त के अनुसार पुरुप के भी चार प्रकार होते हैं ऐसा जानना चाहिये । इसी प्रकार शुद्ध और अशुद्ध पदों के साथ मन पद् को जोडकर चार भङ्ग करना चाहिये। इसी तरह से सङ्कल्प प्रज्ञा दृष्टि शीलाचार व्यवहार और पराक्रम इन पदों को भी जोडकर चतुर्भङ्गी बनाना चाहिये। इस सूत्र का विस्तृत अर्थ इस प्रकार से है टीकार्थ-चत्तारि वत्था' इत्यादि यहां जो शुद्ध शुद्ध शुद्ध अशुद्धर अशुद्ध शुद्ध ३ और अशुद्ध अशुद्ध ४ ऐसे चार भङ्ग कहे गये है सो उसका अभिप्राय ऐसा है जो वस्त्र शुद्ध निर्मल तन्तु आदिकों से रचित निर्मित होने से शुद्ध होता है, और पुनः आगन्तुक मल के अभाव से मैला होने नहीं पाता है ऐसा वह वस्त्र प्रथम भङ्ग के भीतर परिगणित हुवा है । अथवा-जो वस्त्र पहले शुद्ध था, अब सी शुद्ध है ऐसा वस्त्र २ना ४i छ-(१) शुद्ध शुद्ध, (२) शुद्ध गशुद्ध (3) मशुद्ध शुद्ध भने (४) અશુદ્ધ અશુદ્ધ. એ જ પ્રમાણે શુદ્ધ-અશુદ્ધ પદની સાથે પરિણત અને રૂપ, આ બે પદોને અનુક્રમે ચેજિત કરીને વસ્ત્રોમાં ચતુર્વિધતાનું કથન થવું જોઈએ. આ દષ્ટાન્ત અનુસાર પુરુષના પણ ચાર પ્રકાર પડે છે, એમ સમજવું. એ જ પ્રમાણે શુદ્ધ અને અશુદ્ધ પદની સાથે મન, સંકલ્પ, પ્રજ્ઞા, દષ્ટિ, શીલાચાર, વ્યવહાર અને પરાક્રમ, આ સાત પદોને ચેજિત કરીને ચાર ચાર ભાંગાનું કથન કરવું જોઈએ, હવે આ સૂત્રને અર્થ વિસ્તારપૂર્વક સમજાવવામાં આવે છે–વસ્ત્રની અપેક્ષાએ જે ચાર ભાંગ કહ્યા છે તેનું સ્પષ્ટીકરણ-(૧) “શુદ્ધ શુદ્ધ' જે વસ્ત્ર નિર્મળ તત્ત્વ આદિ કે વડે નિર્મિત હોય છે, અને જેમાં મેલના આગમનને અભાવ હોય છે, એવાં વસ્ત્રને શુદ્ધ શુદ્ધ નામના પહેલા ભાગમાં
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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