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________________ स्थानी अथ ऋजुवक्रपूर्वकशीलाऽऽचारघटितचतुर्भङ्गी-११ ऋजुन मैक ऋजुशीलाऽऽचारः १, ऋजुर्नामैको वक्रशीलाऽऽचारः २, वक्रो नामैक ऋजुशीलाऽऽचारः ३, वक्रो नामैको वक्रशीलाऽऽचारः ४॥ ११॥ .. ___ अथ ऋजुचक्रपूर्वकव्यवहारघटितचतुर्भङ्गी-१२ ऋजु मैक ऋजुव्यवहारः १, ऋजुर्नामैको चक्रव्यवहारः २, वक्रो नामैक ऋजुव्यवहारः ३, वक्रो नामैको वक्तव्यवहारः ४॥ १२॥ ___अथ ऋजुवक्रपूर्वक पराक्रमघटितचतुर्भङ्गी-१३ प्राजु मैक ऋजुपराक्रमः १, ऋजुर्नामको चक्रपराक्रमः २, वक्रो नामक ऋजुपराक्रमः ३, वक्रो नामैको चक्रपराक्रमः ४॥ १३॥ ___ इति ऋजुवक्रादिघटित्त्रयोदश सूत्री १३॥ शीलाचार-३ प्रणत प्रणत शीलाचार-४।१२ वां चतुर्भङ्गी का मूत्र इस प्रकार से है-उन्नत उन्नत व्यवहार १ उन्नत प्रणत व्यवहार-२ प्रणत उन्नत व्यवहार-३ और प्रणत प्रणत व्यवहार-४ । १३ वां चतुर्भजी का सत्र इस प्रकार से है उन्नत उन्नत पराक्रम-१ उन्नत प्रणत पराक्रम-२ प्रणत उन्नत पराक्रम-३ प्रणत प्रणत पराक्रम-४ इस प्रकार से उन्नत प्रणत शब्दों के साथ मन आदि ७ पदों को जोडकर ७ चतुझेगी के सुत्र बने हैं । अब ऋजु और वक्र पदों के साथ ऋजु वक्र परिणत और रूप पदों को योजित करके दृष्टान्त और दार्टान्तिक सम्बन्धी पहले की तरह ६ सूत्र, और चतुभङ्गीवाले ७ सूत्र विना दृष्टान्त के बनाये गये हैं, वे इस प्रकार से हैं-ऋजु ऋजु-१ ऋजु वक २ वक्र ऋजु ३ और પ્રણત શીલાચાર, (૩) પ્રણત ઉન્નત શીલાચાર અને (૪) પ્રણત પ્રણત શીલાચાર मारमा सूत्रना या२ मां-(१) Grनत-जन्नत व्यवहार, (२) उन्नतप्रयत व्यवहार, (3) प्रयत-Grna व्यवहार, भने (४) प्रयत-प्रत व्यवहार तरमा सूत्रता या२ मांगा-(१) उन्नत-मन्नत प्राम, (२) मन्नत-प्रायत पराभ, (3) प्रयत-Grid ५२।४भ मन (४) प्राणूत-प्रायत ५२ . આ પ્રમાણે ઉન્નત પ્રણત શબ્દની સાથે મન આદિ ૭ પદેને જોડીને ચાર ચાર ભાંગાવાળા સાત સૂત્ર બન્યાં છે. હવે કાજુ (સરળ) અને વક, આ બે પ સાથે અજુ વકે પરિણત અને રૂપ (સંસ્થાન) પદને ચેજિત કરીને દષ્ટાન્ત અને રાષ્ટબ્લિક સંબંધી બીજાં ૬ સૂત્રે બને છે જેનું સ્વરૂપ પહેલા છ સૂત્ર જેવું સમજવુ) અને ચાર ભંગ યુક્ત ૭ સૂત્રે વિના દષ્ટા ન્તના બનાવી શકાય છે (એટલે કે માત્ર પુરુષને જ અનુલક્ષીને બનાવી શકાય ' છે.) તે સૂત્રોના ભાંગાઓનું સ્વરૂપ આ પ્રકારનું બને છે –
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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