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________________ - - सुपा टीका स्था०३३.२सू०३१ चमरादीनां परिषदोनिरपणम् छाया-चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य तिस्रः परिषदः मज्ञप्ताः, तद्यथा-समिता, चण्डा, जाता। आभ्यन्तरिका समिता मध्यमिका चण्डा, वाह्यका जाता । चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य सामानिकानां देवानां तिस्रः परिषदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-समिता यथैव चमरस्य । एवं त्रायस्त्रिंशकानामपि । लोकपालानां तुम्बात्रुटिता पर्वा । एवमग्रमहिपीणामपि । वलेरप्येवमेव यावत्-अग्रमहिषीणाम् । धरणस्य च सामानिकत्रायस्त्रिंशकानां च शमिता, चण्डा, जाता । लोकपालानामग्रमहिषीणाम् ईशा त्रुटिता, दृढरथा, यथा धरणस्य तथा शेषाणां भवन वासिनाम् । कालस्य खलु पिशाचेन्द्रस्य पिशाचराजस्य तिस्रः परिषदः प्रसाः, तद्यथा-ईशा, त्रुटिता, दृढरथा । एवं सामानिकायमहिपी सूत्रार्थ-असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमरकी तीन परिषदाएँ कही गई हैं जो इस प्रकार से हैं-समिता, चण्डा और जाता, आभ्यन्तर जो परिपदा है उसका नाम समिता है मध्यमिका जो परिषदा है उसका नाम चण्डा है और जो बाह्यपरिषदा है उसका नाम जाता है इसी तरह असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के जो सामानिक देव हैं उनकी भी तीन परिषदाएँ कही गई हैं उनका नाम भी पूर्वोक्तरूप से ही है इसी प्रकार से त्रायस्त्रिंशक देवों की भी इन्हीं नामों वाली तीन परिषदाएँ कही गई हैं। लोकपालों की तीन परिषदाओं के नाम तुम्बा, त्रुटिता और पर्या है इसी प्रकार से जो अग्रमहिषियों की परिषदाएँ है उनके भी ये ही नाम हैं । बलिके परिषद भी यही नाम वाली है । धरण के जो सामा निक और त्रायस्त्रिंशक देव हैं उनकी भी परिषदाओं के शमिता, चण्डा और जाता ये ही नाम हैं तथा लोकपालों की जो अग्रमहिषियां सूत्रार्थ-भसुरेन्द्र, मसुरमा२२॥य यभरनी त्रय परिषह! ४ही छ-(१) समिता, (२) २२ मन (3) anai. माझ्यन्त२ परिषहने शमिता ४ छ, मध्यभि પરિષદને ચંડા કહે છે અને બાહ્ય પરિષદને જાતા કહે છે. એ જ પ્રમાણે અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમારરાય ચમરના સામાનિક દેવેની પણ ત્રણ પરિષદે કહી 'તેમના નામ પણ ચમરની પરિષદ જેવાં જ છે. એ જ પ્રમાણે ચમરના ત્રાય. સિંશક દેવની પણ એ જ નામવાળી ત્રણ પરિષદે કહી છે. કપાલની ત્રણ પરિષદનાં નામ તુમ્બા, ત્રુટિતા અને પર્વો છે. અગમહિષીઓની ત્રણ પરિષદનાં નામ પણ લોકપાલની ત્રણ પરિષદો જેવાં જ છે. બલીની પરિષદાના પણ એ જ ત્રણ નામો છે. ધરણના જે સામાનિક અને ત્રાયશ્ચિશક દે છે તેમની પરિષદનાં નામ પણ સમિતા, ચંડા અને જાતા
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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