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________________ ७ " एवं तु स जयस्सावि पावकम्मनिरासवे, भक्कोडी संचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ " इत्युत्तराध्ययनमुत्र ८ अव्य० ३० गा० ६, वचनात् । अथवा स्थाना#सूत्रे द्विविधो द्रव्यतो भावतश्च । तत्र जलोपरिवर्तिनात्रादेरनवरत विज्जलानां छिद्राणां तथाविधद्रव्येण स्थगनं द्रव्यसंवरः । भावसं वरस्तु जीवनौकायामात्रवत्कर्मजलानामिन्द्रियादिच्छिद्राणां गुप्ति-समित्यादिना निरोधनम् । इत्थं स वरोऽनेकविधस्तथापि संवरसामान्यादेक इति भावः । सवरास्तित्वसिद्धि: प्रत्यक्षानुमानागमप्रमाणैः संवरस्य सिद्धि र्भवति । तथाहि - आत्मपरिणतिविशेषस्य गुप्तिस मित्यादिनिष्पादित विशुद्धाध्यवसाय रूपस्य संवरस्य स्वात्मनि स्वस उक्तं च- एवं तु संजयस्सा वि इत्यादि अथवा - यह संवर दो प्रकार का होता है एक द्रव्य संवर दूसरा भाव संवर जलोपरिवर्तमान नौका आदि में जिन छिद्रों से निरन्तर जल का आगमन होता हो, उन छिद्रों को तथाविध द्रव्य से बन्द कर देना यह द्रव्य संवर है तथा जीवरूपी नौका के प्राणातिपातादि रूप छिद्रों को कि जिनके द्वारा कर्म जल उसमें आता है गुप्ति-समिति आदि से बन्द कर देना इसका नाम भाव संवर है इस तरह से यह संवर अनेक प्रकार का है फिर भी संवर सामान्य की अपेक्षा से यह एक है इसीलिये यहाँ इसे एक कहा गया है । संवर के अस्तिव की सिद्धि -- प्रत्यक्ष, अनुमान एवं आगमन इन प्रमाणों से संवर की सिद्धि इस प्रकार से होती है आत्मा में जो एक विशेष प्रकार की परिणति होती है कि जो परिणति गुप्ति समिति आदि - "" ४ - " एवं तु अथवा सौंवर मे अहारना होय छे. (१) द्रव्यसवर भने (२) लावसं वर. પાણીમાં રહેલી નૌકા આદિમાં જે છિદ્રો મારફત નિરન્તર જલ દાખલ થતુ હાય, તે છિદ્રોને બંધ કરી દેવા. તે દ્રવ્યસ'વર છે. તથા જીરૂપી નૌકાના પ્રાણાતિપાતાદિ રૂપ છિદ્રો કે જેમના દ્વારા ક જલ તેમાં પ્રવેશે છે, તે છિદ્રોને ગુપ્તિ, સમિતિ આદિ વડે અધ કરી દેવાં, તેનું નામ ભાવસંવર છે. આ રીતે આ સવરમાં અનેકવિધતા હોવા છતાં પશુસવર સામાન્યની અપેક્ષાએ તેમાં એકત્વ કહ્યું છે. संवरना अस्तित्वनी सिद्धि-- प्रत्यक्ष, अनुमान भने आगम, या प्रभाव @ાથી સંવરની સિદ્ધિ આ પ્રમાણે થઇ શકે છે આત્મામાં એક વિશિષ્ટ પ્રકારની
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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