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________________ ६५४ स्थानांहस्त्र काय सुप्रणिधानम् । त्रिविधं दुप्पणिधान प्रजप्त, तद्यथा-मनोदुप्पणिधानं, वचोदुष्प्रणिधान, कायदुष्पणिधानम् । एवं पञ्चन्द्रियाणां यावद् वैमानिकानाम्॥मू०१८॥ टीका-तिविहे पणिहाणे ' इत्यादि, सुगम, नवरम्-प्रणिहिता-प्रणिधानम् एकाम्यम् , तच्च मनोवाकायभेदात्त्रिविधम् । तत्र मनसः प्रणिधान मन:प्रणिधानम् , एवमितरे अपि । तच्च चतुर्विशतिदण्डके पञ्चेन्द्रियाणां भवति । इस प्रकार से पुलधर्मो में त्रिरूपता का कथन करके अब सूत्रकार जीब धर्मो में दण्डकसहित तीनस्सूत्रों द्वारा विविधता का कथन करते हैं (तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते ) इत्यादि । सूत्रार्थ-प्रणिधान तीन प्रकारका कहा गयाहै एक मनः प्रणिधान, दूसरा वचन प्रणिधान, और तीसरा कायप्रणिधान इसी तरह का कथन पंचेन्द्रियों से लेकर योवत् वैमानिक देवों तक करना चाहिये । सुप्रणीधान भी तीन प्रकार का कहा गया है एक मनः सुप्रणिधान, दारा वचनसुप्रणिधान, और तीसरा काय सुप्रणिधान, संयत मनुष्यों को यह तीनों प्रकार का सुप्रणिधान होता है प्रणिधान भी तीन प्रकार कहा गया है जैसे-मनः दुष्प्रणिधान, वचन दुष्प्रणिधान और कायदुष्प्रणिधान यह दुष्प्रणिधान भी पंचेन्द्रिय जीवों से लेकर यावत् वैमानिक जीवों तक होता है टीकार्थ - एकाग्रता का नाम प्रणिधान है यह प्रणिधान, मन, वचन और काय के भेद से तीन प्रकार का कहा આ રીતે પુલ ધર્મોમાં વિવિધતાનું કથન કરીને હવે સૂત્રકાર જીવધર્મોમાં દંડક સહિત વિવિધતાનું કથન કરવાને માટે ત્રણ સૂત્રોનું કથન કરે છે. ____“तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते" त्या सूत्र.4:-प्रबिधानना नीय प्रमाणे त्र प्रसर ४ छ-(१) मनः प्रणिधान, (२) વચન પ્રણિધાન અને (૩) કાય પ્રણિધાન. આ પ્રકારનુ કથન પંચેન્દ્રિયેથી લઈને વિમાનિકે પર્યન્તના જીવ વિષે સમજવું. सुप्रणिधानना ५९] १२ छ-(१) मनः सुप्रणिधान, (२) વચન સુપ્રણિધાન, અને (૩) કાય સુપ્રણિધાન, સંયત મનુષ્યમાં આ ત્રણે પ્રકારના સુપ્રણિધાને સદ્ભાવ હોય છે. દુપ્રણિધાનના પણ ત્રણ પ્રકાર AL छ-(१) मन प्रणिधान, (२) वयन विधान भने (3) ४य दुध. ણિધાન આ દુપ્રણિધાનને સદ્ભાવ પણ પચેન્દ્રિયથી લઈને વિમાનિકે પર્ય નાના જીવમાં હોય છે टी -मेयतार्नु नाम प्रधान छ. ते प्रणिधान मन, વચન અને કાયાના ભેદથી ત્રણ પ્રકારનું કહ્યું છે. મનની એકાગ્રતાને મના
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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