SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुधा टीका स्था० २०० १ ० ७ शानक्रियापूर्वकमोक्षनिरूपणम् २५० यस्तु क्रियायाः कारणत्वं न मन्यते तं प्रति विशेषेणोच्यते किया हि मोक्ष मति साक्षात्कारणत्यादन्त्यं कारणम्, ज्ञानंतु परम्पराकारणत्वादनन्त्यं कारणम् । तत्रान्त्यं कारणं विहाय यदनन्त्यस्यैन कारणत्वेन कल्पनं तग्निर्मूले शास्त्रविरुद्धं व सूत्रे व " विजाए चेत्र करणेग चेत्र ' इति चरणस्यैवान्त्यकारणत्वेन स्वीकृतत्वात् । एतेन क्रियायाः ज्ञानफललमुपपाय ज्ञानमात्रस्य यत्कारणत्वमुक्तं तदपि निराकृतम् । यदुक्तं-बोधकालेऽपि यो ज्ञेयपरिच्छेदो भवति, तस्य कारणं ज्ञानमेवेति तस्माद् ज्ञानमेव कारणं नतु क्रियेति, तदप्ययुक्तम् । यतः ज्ञेयपरिच्छेदोऽपि ज्ञान जो क्रिया में कारणता नहीं मानना है उसके प्रति ऐसा कहा जाता है कि क्रिया मोक्ष के प्रति साक्षात्कारण होने से अन्त्यकारण है तथा ज्ञान परम्पराकारण होने से अनन्त्यकारण है इसलिये अनन्त्यका रण को छोड़कर जो अन्त्य को कारणरूप से मानता है यह निर्मूल और शास्त्रविरुद्ध है इसी से सूत्र में "विज्जाए चेव चरणेण चेव" इस कथन से चरण में अन्त्यकारणता स्वकृत हुई है इसी कथन से यह भी निराकृत हो जाता है कि ज्ञानका फल क्रिया है इसलिये ज्ञानमात्रमें कारणता है। तथा ऐसा जो कहा गया है कि नोधकाल में भी जो ज्ञेय (पदार्थ) का परिच्छेद (ज्ञान) होता है उसका कारण ज्ञान ही है तथा रागादि निग्रहात्मक जो ज्ञान होता है उसका भी कारण ज्ञान ही है इसलिये ज्ञान ही कारण है मोक्षप्राप्ति में किया नहीं है सो ऐसा भी कहना ठीक नहीं है क्यों कि ज्ञेय का जो परिच्छेद (ज्ञान) है यह स्वयं ज्ञानरूप ही જે લેકે ક્રિયામાં કારણુતાના સ્વીકાર કરતાં નથી, તેએ એવી દલીલ કરે છે કે “ ક્રિયા મેક્ષપ્રાપ્તિમાં સાક્ષાત્ કારણુભૃત હોવાથી અન્ત્યકારણુરૂપ છે, તથા જ્ઞાન પરમ્પરા કારણરૂપ હોવાથી અનન્ય કારણુરૂપ છે. ” પરંતુ આ રીતે અન્ત્યને કારણરૂપ ન માનતાં અન્ત્યને કાર}રૂપ માનવુ તે નિર્મૂળ मने शास्त्रविद्ध छे तेथील सूत्रभा " विज्जाए चैव घरणे चेन 2 કધન દ્વારા ચરણુમાં ( ક્રિયામાં ) અન્ત્યકારણુતાને સ્વીકાર થયેા છે આ ય નથી તે વાતનું પ્રતિપાદન થઈ તૈય છે કે જ્ઞાનનું કલ જે ક્રિયા છે, તેથી જ્ઞાનમાત્રમાં કરણતા છે. વળી એવું જે કહેવામાં આવ્યું છે કે એધકાળમાં પણ જે ય ( पदार्थ ) नाप (ज्ञान) धाय हे, तेतुन्तु ज्ञान तेथी જ્ઞાન જ મેપ્રાપ્તિમાં કારમૃત હૈં, ક્રિયા કારણભૂત નથી " भराभर नथी, हारतु है ( ) कान भन् (ज्ञान) यछे ते
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy