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________________ सुधारीका स्था० २ उ०एस०५ दृष्यगर्भायाम् यहारमर्द नाना पटान्नः ५२ इति । अथवा--मनसाऽपि, न बचो मात्रेग एको गई ते, तथा-बचमाऽपि, न मनोमाग एको गर्ह ते उति उभपथाऽप्येक एक गई ने ' इति भारः। ___प्रकारान्तरण गर्रया द्वैविध्यमाह- अहया' इत्यादि । अथवा गर्दा द्विविया पाता । तद् यथा-दीवां वा एकः अद्धां गहने, स्यां वा पकः, अद्रां गईने । अयमय:-एका-कोऽपि, दोषीं-मृद्धतीम् , अहांकालं यावन् , यावज्जीयमित्यर्थः, गहते-गई णीयम् , इति भावः । अन्य प्रकारेणापि विवक्षया दीधन्वं भावनीयम् । दीर्घहस्ययोरापेक्षिकत्वात् । यथा-एकमासापेक्षया द्विमामादिकः कालो दीयों भवति एवम् एकोऽन्यः दूरबाम्-भल्यां वा अदां यावद् गर्ह ने गहणीयम् । है कि कोई एक मुनि मन से गहीं करता है कोई एक सुनि बचन से गर्दा करता है ऐसा संभावित होता है। ____ अथवा-कोई एक मुनि केवल वचन मात्र से गहीं नहीं करता है किन्तु मन से भी वह गहीं करता है तथा कोई एक मुनि लेवल मनो मात्र से गहीं नहीं करता है किन्तु वचन से भी नहीं करता है इस तरह दोनों प्रकार से भी कोई एक मुनि गर्दा करता है। __अव प्रकारान्तर से भी गर्दा के दो भेद प्रकट किये जाते हैं "अहवा" इत्यादि ___ अथवा गहीं दो प्रकार की कही गई है जैसे-कोई एक दीर्घ अढा की गर्दा करता है और कोई एक हस्व अद्धा की नहीं करता है हमका अर्थ इस प्रकार से है कोई एक बहुत काल तक यावज्जीव गहणीय (पाप) की गहीं करता है दीर्घता और स्वता ये दोनों आपेक्षिक हैं इसलिये अन्य प्रकार से भी विवक्षा दीर्घता समझी जा सकती है जैसे વચનથી ગહ કરે છે, એવું સંભવિત હોઈ શકે છે. ” અથવા કઈક મુનિ વચન માત્રથી જ ગહ કરતા નથી પણ મનથી પણ ગટ કરે છે. તથા કઈ મુનિ કેવળ મનથી જ ગર્વી કરતા નથી, પરંતુ વચનથી પણ ગર્લ્ડ કરે છે. આ રીતે કઈ કઈ મુનિ અને પ્રકારે ગ કરે છે. वे अन्य ते पy गाना गेले तापामा माये-"जया" ત્યાદિ-અથવા ગહન નીચે પ્રમાણે બે પ્રકાર (1) કઈ રીલંકાળ પર્યન્ત ગડો કરે છે (૨) કઈ કસ્વાદ્ધની-મંકા કાળની ગડી કરે છે. કેટલાક માપ દીર્ઘકાળ સુધી-જીવન પર્યન્ત ગાર્ડીયની (પાપની) ગાં કયાં કરે છે. દીર્વના અને કસ્તતા એ અને આપકિ છે. તેવી દીર્થનાનું બીજી રીતે ૫: પ્રતિ. પાદન કરી શકાય છે. જેમકે એક માસની અપેક્ષાએ બે માસ આદિ રમણ
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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