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________________ १२४ निरंशं समयं निरूप्य प्राप्तावसरो निरंशं वस्त्वपि निरूपयतिमूलम् - एगे पएसे एगे परमाणू ॥ सू० ४७ ॥ छाया - एकः प्रदेशः, एकः परमाणुः ॥ मू० ४७ ॥ टीका - ' एगे ' इत्यादि प्रदेश:- मकुष्टो देशः प्रदेश: - धर्माधर्माकाशजीवानां निरंशोऽवयवविशेषः, स च एकः = एकत्वसंख्यावान् । एकत्वं चास्य स्वरूपतो वोध्यम् । अथ परमाणुं निरूपयति - ' एगे परमाणु ' इति । परमाणुः - परमथासौ अणुश्चेति द्वयणुकादिस्कन्धकारणभूतोऽपि सूक्ष्मोऽणुः, उक्तं च 1 " कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसवर्णगन्धो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च " ॥ १ ॥ इति । स्थानासूत्रे निरंश समय की प्ररूपणा करके अब सूत्रकार निरंश वस्तु की प्ररूपणा करते हैं 'एगे पसे एगे परमाणू' इत्यादि ४७ ॥ मूलार्थ - प्रदेश एक है परमाणु एक है ॥ टीकार्थ - प्रकृष्ट देश का नाम प्रदेश है यह प्रदेश धर्म, अधर्म आकाश और जीवद्रव्यका निरंश अवयवविशेषरूप होता है यह एकत्व संख्याविशिष्ट है एकत्व इसमें स्वरूप से कहा गया है । परमाणु का निरूपण -- परम जो अणु है उसका नाम परमाणु है यह परमाणु इयणुकादि स्कन्ध का कारणभूत होता है और अतिसूक्ष्म होता है । कहा भी है- ' कारणमेव तदन्त्यं ' इत्यादि यह परमाणु कारणरूप ही होता है कार्यरूप नहीं होता है क्यों कि यह नित्य माना गया है इसमें एकरस, एकवर्ण, एकगन्ध और अवि “ एगे पएसे एगे परमाणू " इत्यादि ॥ ४७ ॥ सूत्रार्थ - प्रदेश मे छे, परम ! छे ॥ ४७ ॥ टीडार्थ –अदृष्ट हेशनुं नाम प्रदेश छे. ते प्रदेश धर्म, अधर्म, भाअश અને જીવદ્રવ્યના નિરશ અવયવ વિશેષરૂપ છે. તે એક છે. તેમાં સ્વરૂપની અપેક્ષાએ એકત્વ સમજવાનું છે. પરમાણુનું નિરૂપણુ—પરમ જે અણુ છે તેને પરમાણુ કહે છે. બે, ત્રણુ આદિ અણુવાળા સ્કન્ધની ઉત્પત્તિમાં આ અણુ કારણભૂત હૈાય છે. તે અતિशय सूक्ष्म होय छे. धुं पशु छे --' कारणमेव' इत्यादि આ પરમાણુ કારણરૂપ જ હાય છે, કારૂપ હેાતું નથી, કારણ કે તેને નિત્ય માનવામાં આવેલ છે. તેમાં એક રસ, એક વધુ, એક ગંધ અને કાઇ
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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