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________________ सुधा टीका स्था० १ उ० १ सू० ३०-३१ सादिनिरूपणम् संज्ञां निरूपयति मूत्रम् - 'एगा सन्ना' | छाया - एका संज्ञा ॥ मु० ३० ॥ व्याख्या- 'एगा सम्ना ' इति । संज्ञानं संज्ञा - व्यञ्जनावग्रहोत्तरकालभावीति विशेषः, आहारभयाद्युपाधिका वा चेतना संज्ञा, अभिधानं वा संज्ञा, सा चैका - एकत्वसंख्याविशिष्टा । आहारभयादिभेदरियं यद्यपि दशविधा तथाऽपि संज्ञासामान्येन एकेति भावः ॥ सं० ३० ॥ मर्ति निरूपयति सू० ३० ॥ मूलम् - 'एगा मन्ना' ।। सू० ३१ ॥ संज्ञा का निरूपण किया जाता है । 'एगा सन्ना' इत्यादि ॥ ३० ॥ मूलार्थ - संज्ञा एक है । सृ० ३० । टीकार्थ - अवग्रह ज्ञान व्यञ्जनावग्रह और अर्थावग्रहके भेद से दो प्रकार का होता है इनमें व्यञ्जनावग्रह के उत्तरकाल में जो ज्ञानविशेष होता है उसका नाम संज्ञा है अथवा - आहारभय आदि विशेषणयुक्त चेतना का नाम संज्ञा है अथवा - नाम का भी नामसंज्ञा है जैसे देवदत्त आदि, इस तरह आहारभय आदि की यह संज्ञा दश प्रकार की कही गई है फिर भी यहां जो इसे एक कहा गया है वह संज्ञा सामान्य की अपेक्षा से कहा गया है ऐसा जानना चाहिये ||३० ॥ नति का निरूपण किया जाता है । 'एगा मन्ना' इत्यादि ॥ ३१ ॥ ct स'ज्ञानु निश्चयु- " एगा सन्ना " इत्यादि ॥ ३० ॥ सूत्रार्थ --संज्ञा मे छे. ॥ ३० ॥ ટીકા---વ્યંજનાવગ્રહ અને અર્થાવગ્રહના ભેદથી અવગ્રહજ્ઞાન બે પ્રકા રતુ છે. વ્યંજનાવગ્રહના ઉત્તરકાળે જે જ્ઞાનવિશેષ થાય છે તેને સત્તા કહે છે. અથવા—આહાર, ભય આદિ વિશેષણયુક્ત ચેતનાને સન્ના કહે છે. અથવા દેવદત્ત આદિ વિશેષનામને પણુ સંજ્ઞા કહે છે. આ રીતે આહાર, ભય આદિ ભેદોની અપેક્ષાએ સ'ના દસ પ્રકારની કહી છે. પરન્તુ અહીં તેને જે એક કહી છે તે સ'જ્ઞાસામાન્યની અપેક્ષાએ કહી છે, એમ સમજવુ'. ૫ સ્૦૩૦ ॥ ९७ મતિનું નિરૂપણુ~~~ एगा मन्ना " त्याहि ॥ ३१ ॥ ३
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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