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________________ समयार्थवोधिनी टीका प्र. शु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् मलम्-ण कुबई महावीरे अणुपुवकडं रैयं । रेयला संमुंही भूया कम्मं हेचाण जं मयं ॥२३॥ .. छाया-न करोति महावीर आनुपूर्ध्या कृतं रजः । रजसा संमुखी भूताः कमें हित्वा यन्मतम् ॥२३॥ अन्वयार्थ :- (महावीरे) महावीरः-कर्मविदारणसमर्थों मुनिः (अणुपुचकर्ड) आनुपूर्वीकृतं-आनुपूर्या मिथ्यात्वाविरतिकषायममादायशुभयोगैः अनन्तभवसमा 'ण कुब्बई महावीरे' इत्यादि। शब्दार्थ--'महावीरे-महावीर.' कर्मके विदारणमें शक्तिवाला मुनि 'अणुपुठवाडं- आनुपूर्या कृतम्' दूसरे मागी जो क्रमसे मिथ्यात्व, अवि. रति, कषाय, प्रमाद आदि अशुभ योगोंसे अनन्त भव से प्राप्त संस्कार के क्रमसे लब्ध किया हुआ 'रयं-रजा' ज्ञानावरणीयादि कर्मरज अथवा पापकर्म 'ण कुबई-न करोति' नहीं करता है कारण की 'रयसारजसा' पूर्वभवले उपार्जित कर्म से ही पाप होता है अतः 'कम्म-कर्म पापकर्म अथवा उसके कारणको 'हेच्चाण-त्यक्वा' त्याग करके 'जयत' जो 'मयं-मतं' तीर्थ कर आदि महापुरुषों के सम्मत और मोक्षके उपाय रूप तपः संयमादिरूप के 'संमुहीभूया-संमुखी भूताः' सन्मुख होते हैं अर्थात् मोक्षप्राप्ति के योग्य आचरण में ही तत्पर रहते हैं ॥२३॥ अन्वयार्थ-महावीर अर्थात् कर्म विदारण करने में समर्थ मुनि मिथ्यात्व, अविरति प्रमाद, कषाय एवं अशुभ योग के द्वारा अनन्त 'ण कुव्वई महावीरे' त्याह शनाथ'--'महावीरे-महावीरः' भन विहारमा शतवाणी भुनि 'अणुपुवकडं-मानुपूर्व्या कृतम्' भी प्राणी भथा मिथ्याप, मरिति, पाय, પ્રમાદ, વિગેરે અશુભ યોગથી અનન્ત ભવથી પ્રાપ્ત કરેલા સંસ્કારના કમથી प्राप्त ४२ता 'रयं-रजः' ज्ञानावरणीय वगरे ४ २०४ अथवा पारमण कुव्वइ-न करोति' ४२ता नथी. ४।२६ है 'रयसा-रजमा' पूनम रे। भथी १ पा५ थाय छे. तेथी 'कम्म-कर्म' पा५४भ अथवा तेना २४ने 'हेच्चाण-त्यक्त्वा' त्याग ४ीने 'ज-यत्' 7 'मय-मतम्' तीथ २ विगेरे महाv३षाने सम्भत भने भाक्षना Guय ३५ त५: संयमाहिना 'संमुहीभूया संमुखी भूताः' सन्भुम थाय छे. अर्थात् भाक्ष प्रान्ति योग्य मायरामा તત્પર રહે છે. રિયા અવયાર્થ–મહાવીર અર્થાત્ કર્મનું વિદારણ કરવામાં સમર્થ નિ મિથ્યાત્વ, અવિરતિ, પ્રમાદ કષાય, અને અશુભ ચોગ દ્વારા અનંત ભના सू० ७०
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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