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________________ सूत्रतानसूत्रे छाया--शब्दान् श्रुत्वाऽथ भैरवान् , अनाश्रव स्तेषु परिव्रजेत् । निद्रांच भिक्षुन प्रसादं कुर्यात्, कथं कथं वा विचिकित्सा तीर्णः ।। अन्वयार्थ:-(भिक्खू) भिक्षुः-निरवभिक्षाशीला साधुः (सदाणि) शब्दान् -कर्णप्रियान् वेणुमृदङ्गादिशब्दान् ‘सोच्चा' श्रुत्या (अदु) अथवा (भेरवाणि) भैरवान्-भयावहान्-कर्णकटून सिंहादिशब्दान् श्रुत्वा (तेसु) तेषु कर्णप्रिय कर्ण 'लहाणि सोच्चा' इत्यादि । शब्दार्थ-'भिक्खू-भिक्षुः' निरदद्य भिक्षा को ग्रहण करने वाला साधु 'सहाणि-शब्दान्' कर्णप्रिय वेणु, मृदङ्ग आदि के शब्दों को 'सो. च्चा-श्रुत्वा' सुन करके 'अदु-अथवा' अथवा 'भेरयाणि-भैरवान्' अथङ्कर कर्णकटु सिंहादिके शब्दों को सुनकरके 'तेसु-तेपु' अनुकूल प्रतिकूल ऐसे शब्दों में 'अणासवे-अनाश्रयः' रागद्वेष रहित होकर के 'परिव्य एज्जा-परिव्रजेत्' संघमके अनुष्ठान में तत्पर रहे तथा 'निदंचनिद्रांच निद्राको और ‘पमाय-प्रमादम्' प्रमाद 'न कुज्जा-न कुर्यात्' न करे इल प्रकार करनेवाला 'लहं कहं वा-कथं कथमपि' कोह भी विषयमें 'वित्तिगिच्छतिन्ने-विचिकित्सातीर्णः' चित्तविप्लुतिरूप भ्रमको गुरु कृपा से पार करते हैं ॥६॥ ___अन्वयार्थ-निर्दोष भिक्षाग्रहण करनेवाला लाधु कर्णप्रिय वेणु मृदङ्गादि शब्दों को सुनकर अथवा अत्यन्त भयजनक कर्णकटु सिंहव्याघ्रादिक्षा शब्दों को सुनकर उन उन कर्णप्रिय एवं कर्णकटु अनुकूल 'सहाणि सोच्चा' या Avatथ-'भिक्खू भिक्षुः' नि१ मिक्षा घडल्य ४२वाणा साधु 'सहाणि शब्दान्' जानने गमे तवा वीय, भृग विगेरेना शहाने 'सोच्चा-श्रुत्वा' सामजीन 'अदु-अथवा' मगर 'भेरवाणि-भैरवान्' सय ४२ ४९४२ सिंडविगे. श्ना शोर सालजीने 'तेसु-तेपु' मनुण प्रतिष सेवा शोभा 'अणा सवे-अनाश्रवः' राग मने देष हित मनीन परिव्वरज्जा-परिजेत्' सयभना मनुहानमा तत्५२ २२ तथा निदच-निद्रांच' निद्राने भने 'पमाय-प्रमादम्' प्रभाह 'न कुज्जा-न कुर्यात्' न ४२ तथ। 'कह कहवा-कंधकथमपि' ही ५५ विषयमा वितिगिच्छतिन्ने-विचिकित्सातीर्णः' वित्तविलति ३५ भ्रमने मु३. पाथी ५२ ४२ छे. ॥६॥ અન્વયાર્થી—નિર્દોષ ભિક્ષા ગ્રહણ કરવાવાળો સાધુ કાનને પ્રિય વણા, મૃદંગ વિગેરેના શબ્દોને સાંભળી અથવા અત્યંત ભયકારક કર્ણકઠોર સિંહ,
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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