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________________ १३७८ सूत्रकृताङ्गो :: अन्वयार्थ-(नक्साई) तर्केण (केमिचि) हेपांचिद् मिथ्यात्योपहतबुद्धी नाम् (भाव) भाव-अभिमाया (अनुज्ञ) अनुया - अनुमानादिनाऽज्ञात्या परतीथिकमुपदिशेव तदा (अ.हाणे) अश्रदधानः श्रोता स्वधर्मनिन्दा श्रुत्वा कदाचित् (खुदंपि) क्षौद्रमपि-क्षुद्रत्वमगि-उपहार प्रतिनिरोधमपि (गच्छेजना) गच्छेतमाप्नुयात् ततश्च-'माइन) अ.गुगः (कालागार) कालादिचारम्-दीर्घकालस्थितिकत्वमपि (बघाए) नया रूप रिनाशलक्षणं कुर्यात् तस्मात् (लद्राणुमाणे य) लब्धानुमान च-अनुमानादिला राशिमा जात्या (परेसु) परेषु परतीथिकेषु (भटे) अर्थान- साहमाहिए णादिजान उगदिगेदिति भावः ॥२०॥ और 'आउस-आयुषः' यह उपदेश करने वाले की आयुके 'कालाइयार -कालातिचार' कालातिक्रमणरूप 'वघाए-व्याघातम्' व्याघात-याधा पहोंचावे इसलिए 'लद्धाणुमाणे य-लमानुमानश्च' अनुमान आदि से अन्य का अभिप्राय जानकर के 'परेलु-परेपु' परतीधिकों को 'अद्वे'अर्थान्' सद्धर्मादि प्ररूपणाप अर्थका उपदेशकरे ॥२०॥ - अन्वयार्थ-तर्क के द्वारा किन्हीं मिथ्यात्वोपहत घुद्धियों का ____ अभिप्राय को अनुमान बगैर के द्वारा जाने बिना ही यदि साधु परती. ___-र्थियों को धर्मोपदेश करे तो श्रोता अपने धर्म को निन्दा सुनकर अश्रद्धा करते हुए कदाचित् उपदेशक का ही विरोध कर सकता है 1, और उपदेशक के आयु का भी विघात कर सकता है। इसलिये अनु मानादि के द्वारा पराभिनाय को जान सर परतीर्थिकों को - सद्धर्मादि का उपदेश करें ॥२०॥ गच्छेत्' प्रआ थाय भने 'माउस्स आयुषः' ते उपहेश ४२ना२ना आयुज्यना 'कालाइयार-कालातिचारम्' तिमन ३५ वाघाए-व्याघातम्' व्याघात"माया पाया तथा 'लद्धाणुमाणे य-लब्धानुमान' भनुमान विश्थी भीतना "मिप्रायन 'angla 'परेसु-परेपु' 'मन्य तीथ ने 'अद्वे-अर्थान्' सद्धाह પ્રરૂપણ રૂ૫ અર્થને ઉપદેશ કરે છે - અન્વયાર્થી—તર્ક દ્વારા કોઈ મિથ્યાત્વથી અપહત બુદ્ધિવાળાઓના - ' અભિપ્રાયને અનુમાન વિગેરેથી જોયા વિના જ જે સાધુ પ્રતીર્થિકોને ધર્મનો : -ઉપદેશ આપે તે શ્રોતાજન પિતાના ધર્મની નિંદા સાંભળીને અશ્રદ્ધા કરીને છે ! કદાચં ઉપદેશકને જ વિરોધ કરી શકે છે અને ઉપદેશકના આયુષ્યને પણ છે વિઘાત કરી શકે છે. તેથી અનુમાન વિગેરે દ્વારા અન્યના અભિપ્રાયને સમ:: જીને પરતીર્થિકને સદ્ધર્મ વિગેરેને ઉપદેશ કરે છે
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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