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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २९५ ___ अन्वयार्थः-(ते) ते-आस्रवनिरोधेन कर्मक्षपकास्तीर्थकराः (लोगस्स) लोकस्य प्राणिसमूहस्य (तीयउप्पन्नमणागयाइं) अतीतप्रत्युत्पन्नानागतानि,-भूतवर्तमानभविष्यकाळभावीनि सुखदुःखादि (तहागयाइं) तथागतानि-यथा-वस्थितानि (जाति) जानन्ति । तथा-ते तीर्थकराः (अन्नेसिं) अन्येषां जीवानाम् (णेतारो) नेतार:-मार्गदर्शकाः सन्ति किन्तु ते स्वयम् (अणन्नणेया) अनन्यनेता-नान्ये तान् नेतुं समर्थाः सन्ति । तर्हि कथमेतादृशा जाताः ? इत्याह-(ते) ते-तीर्थ'ते तीय उप्पन्नमणागयाई' इत्यादि।। शब्दार्थ-'ते-ते' वे आनव के निरोधसे कर्मका क्षय कहने वाले वीतराग पुरुष 'लोगस्स-लोकस्य प्राणी समूहके 'तीय उप्पन्नमणागयाई-अतीतोत्पन्नानागतानि' भून, वर्तमान और भविष्य ऐसे कालत्र यका वृत्तांतो को 'तहागयाई-तथागतानि' यथार्थ रूपसे 'जाणंतिजानन्ति' जानते हैं एवं वे तीर्थकरादि 'अन्नेसिं-अन्येषां दूसरे जीवोंके 'णेतारो-नेतारः' नेता अर्थात् मार्गदर्शक है परंतु स्वयं 'अणन्नणेयाअनन्यनेता।' नेता रहित हैं अर्थात् उनका कोई नेता नहीं है 'ते-ते' थे तीर्थकरादि ज्ञानी पुरुष 'हु-च' निश्चय 'बुद्धा-बुद्धाः' स्वयं बुद्ध होने से 'अंतकडा-अन्तकृताः' सकल कर्मों का नाश करनेवाले होते हैं ।।१६।। . अन्वयार्य-आश्रवका निरोध करके कर्मों का क्षय करनेवाले तीर्थकर प्राणियों के भूत, वर्तमान और भविष्यत् काल को सुख दुःख को यथार्थ रूप से जानते हैं। वे अन्य जीवों के नेतामार्गदर्शक होते 'ते तीयठप्पन्नमणागयाइ' या शहाथ--'ते-ते' मासाना पाथी ४मना क्षय भानपापा वात२५३। 'लोगस्स-लोकस्य' प्राणियोना सरना 'तीयउप्पन्नमणागयाई-अतीतोत्पन्नानागतानि' भूत, पतभान, मने माविष्य मेम त्रये ना वृत्तांतान 'तहागयाइ-तथागतानि' यथार्थ पायाथी 'जाणंति-जानन्ति' and छे भने तीथ४२॥6 'अन्नेसिं-अन्येषां' जीत ना 'णेतारो-नेतारः' नेता मयत भाश' छे. परंतु स्वयं 'अणन्नणेया-अनन्यनेता.' नेता २हित छ, अर्थात् તેઓને કોઈ નેતા નથી તે-તે તીર્થંકરાદિ જ્ઞાની પુરૂષ “દુ- નિશ્ચય 'बुद्धा-बुद्धाः' स्वय मुद्ध पाथी 'अंतकडा-अन्तकृताः' स४ भान नाश કરવાવાળા હોય છે ૧૬ અન્વયાર્થ–આવોને નિરોધ કરીને કર્મોને ક્ષય કરવાવાળા તીર્થ કર પ્રાણિના ભૂત, વર્તમાન અને ભવિષ્ય કાળને સુખ દુખ અને યથાર્થ પશુથી જાણે છે. તેઓ અન્ય જીના નેતા-માર્ગદર્શક બને છે, પરંતુ
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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