SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० सूत्रकृतास्त्र मूलम्-पूईकर ने सर्विजा, एस धम्मे वुसीसओ। जं किंचिं अभिकखेज्जा, संव्यसो त ने कैप्पए ॥१५॥ छाया-पूतिकर्म न सेवेत, एष धर्मों वृषिमतः । यत्किञ्चिदभिकाक्षेत्, सर्वशस्तन्न कल्पते ॥१५॥ अन्वयार्थः-(पूई कम्मन से विज्जा) पूतिकर्म-केनाऽपि आधार्मिकाद्यशुद्धाहारेण संपृक्तमाहारादिकं न सेवेत-न भुजीत (बुसीमयो एस धम्मे) वृषि करके जो आहार पानी आदि तैयार किया गया हो उसको साधु ग्रहण न करे ॥१४॥ 'पूईकम्मं न लेविज्जा' इत्यादि । __शब्दार्थ-'पूईकम्मं न सेविज्जा-पूतिकर्म न सेवेत' जो आहार आधाकर्मी आहार के एक कणसे भी युक्त हो साधु उसका सेवन न करे. 'वुसीमओ एस धम्मे-संयमदनः एषधर्म' शुद्ध संयम पालन करने वाले साधुका यही धर्म है 'ज किंचि अभिकंखेज्जा-यत्किंचित् अभिकक्षित् शुद्ध आहार में भी यदि अशुद्धिकी आशंका हो जाय तो 'सव्वसो तं न कपए-हर्वशः तन्न कल्पते' वह आहार भी साधुको ग्रहण करने योग्य नहीं है । १५॥ • अबायर्थ--लाधु पूतिकर्म आहार का अर्थात् जिस आहार में आधाशी का थोडा सा भी अंश (सिथ मान मिला हुआ हो, सेवन ધના કરીને જે આહાર પણ વિગેરે તૈયાર કરવામાં આવેલ હોય તેને સાધુ ગ્રહણ ન કરે ૧૪ 'पूर्दकम्मं न सेविज्जा' त्या Avt--पूईकम्मं न सेविज्जा-पूतिकर्म न सेवेत' २ माडा२ माथा. કમી આહારના એક કણથી પણ યુક્ત હોય તેવા આહારનું સેવન કરવું नन 'वुसीमओ एस धम्मे-संयमवतः एष धर्मः' शुद्ध सयभनु पालन ४२१॥ पाणा साधुने। मे धम छे. 'जकिंचि अभिकंखेन्जा-यत् किञ्चित् अभिकक्षित्' शुद्ध माडामा ५ नमशुद्ध पानी माश। २४ आय तो 'सव्वसो तं न कप्पए-सर्वशः तन्न कल्पते' ते माहा२ ५९ साधुने प्रड ४२३॥ ગ્ય નથી. ૧૫ અન્વયાર્થ–સાધુએ પૂતિકર્મ આહારને અર્થાત્ જે આહારમાં આધાકમિને છેડે અંશ પણ (સિયમાત્ર) મળેલ હોય તેનું સેવન કરવું નહીં આ
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy