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________________ ६१५ विषय पृष्ठाङ्क कर्मबन्धके कारण हो जाते हैं । जो अनास्रव-कर्मनिर्जराकारक व्रतविशेष हैं वे अपरिस्रव-कर्मबन्धके कारण हो जाते हैं, जो अपरिस्रव-कर्मबन्धके कारण हैं वे अनास्रव-कर्मनिर्जराकारक व्रतविशेष हो जाते हैं। ६०६-६१५ ३ द्वितीय सूत्र। ४ 'जो आस्रव हैं वे परिस्रव हैं जो परिस्रव हैं वे आस्रव हैं, जो अनास्रव हैं वे अपरिस्रव हैं जो अपरिस्रव हैं वे अनास्रव हैं'-इन पदोंको जानता हुआ ऐसा कौन मुनि है जो पड्जीवनिकायको बंधते हुए और मुक्त होते हुए जिनागमानुसार जान कर, तथा सभी तीर्थङ्करोद्वारा भिन्न-भिन्नरूपसे प्रतिबोधित बन्धकारण और निर्जराकारणको जानकर धर्माचरणमें प्रवृत्त न हो ! ६१५-६१६ ५ तृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय सूत्र । ६ प्रवचनज्ञानसे युक्त मुनि, हेयोपादेयको तथा यथोपदिष्ट धर्म को जाननेवाले संसारियों के लिये उपदेश देते हैं। ज्ञानीका उपदेश सुनकर, आर्त अथवा प्रमत्त भी प्रबुद्ध हो जाते है । मैंने जो कुछ कहा है और मैं जो कुछ कहता हूँ वह सत्य ही हैं। मैंने यह सब भगवान्से सुनकर ही कहा है । मोक्षाभिलाषीको इसमें सम्यक्त्व-श्रद्धान रखना चाहिये । ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र । ६२०-६२१ ८ संसारी जीव मृत्युसे नहीं बच सकते । वे धर्मसे बहिर्भूत होनेके कारण इच्छाके अधीन रहते हैं, अति-असंयमी होते हैं, काल-मृत्युसे गृहीत होते हैं, अथवा-आगामी वर्षमें या उसके बाद के वर्षों में धर्माचरण करने के संकल्प करते रहते हैं, और धान्यादि संग्रह करनेमें ही लगे रहते हैं। ऐसे संसारी जीव अनन्तवार एकेन्द्रियादिक भवोंमें जन्म लेते रहते हैं। ६२१-६२४ ९ पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र । ६२४ • इस लोकमें कितनेक जीवोंको वारंवार उत्पन्न होने के कारण
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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