SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२६ आचारागसूत्रे प्रकारान्तरेणापि सम्यक्त्वस्य दशविधत्वं स्थानाङ्गादौ प्रतिवोधितम्, यथा(१) निसर्गरुचिः, (२) उपदेशरुचिः, (३) आज्ञारुचिः, (४) मूत्ररुचिः, (५) वीजरुचिः, (६) अधिगमरुचिः, (७) विस्ताररुचिः, (८) क्रियारुचिः, (९) संक्षेपरुचिः (१०) धर्मरुचिरिति । तत्र-निसर्गः स्वभावस्तेन रुचिर्जिनोक्ततत्त्वाभिलापरूपा यस्य स निसर्गरुचिः१ । उपदेशो गुर्वादिभिर्वस्तुतत्त्वकथनं, तेन रुचिर्यस्य स उपदेशरुचिः२। जो क्षायोपशमिक सम्यक्त्व का लक्षण कहा है, वह भी सुघटित हो जाता है; कारण कि यहां पर मिथ्यात्वमोहनीय मिश्रमोहनीय और सम्यक्त्वमोहनीय प्रकृतियों के अनुदीर्ण पुंज उपशम-अवस्था में रहते हैं एवं उदीर्ण मिथ्यात्व का क्षय है, और सम्यक्त्व प्रकृति के दलोंका वर्तमान में उदय हो रहा है। __प्रकारान्तर से भी सम्यक्त्व दस प्रकार का है, वह स्थानाङ्ग आदि सूत्रों में वर्णित है, जैसे-(१) निसर्गरुचि, (२) उपदेशरुचि, (३) आज्ञारुचि, (४) सूत्ररुचि, (५) वीजरुचि, (६) अधिगमरुचि, (७) विस्ताररुचि, (८) क्रियारुचि, (२) संक्षेपरुचि, (१०) धर्मरुचि।। निसर्ग नाम स्वभाव का है; स्वभाव से ही जिस जीव को जिनोक्त तत्त्वों में रुचि-अभिलाषा होती है उसके यह सम्यक्त्व होता है। अर्थात्-स्वभाव से ही जीव की रुचि जिसके द्वारा जिनकथित तत्त्वों में हुआ करती है वह निसर्गरुचि है (१)। गुर्वादिक के उपदेश से तत्त्वों में जो પણ સુઘટિત થઈ જાય છે, કારણ કે આ ઠેકાણે મિથ્યાત્વમોહનીય મિશ્રમોહનીય અને સમ્યક્ત્વમોહનીય પ્રકૃતિના અનુદીર્ણ પુંજ ઉપશમ અવસ્થામાં રહે છે, એવં ઉદણ મિથ્યાત્વને ક્ષય છે અને સમ્યક્ત્વપ્રકૃતિના દળિઓને વર્તમાનમાં उहय थाय छे. પ્રકારાન્તરથી પણ સમ્યક્ત્વ દશ પ્રકારના છે, તે સ્થાનાંગ આદિ સૂત્રમાં पर्पित छ भ-(१) निसर्ग३थि, (२) उपदेश३थि, (3) माज्ञा३थि, (४) सूत्र ३थि, (५) भी।३थि, (6) अधिगम३थि, (७) विस्ता२३थि, (८) जिया३थि, (6) ५३थि, (१०) धर्म३थि. નિસર્ગ નામ સ્વભાવનું છે; સ્વભાવથી જ જે જીવને જીત તોમાં રૂચિ-અભિલાષા થાય છે તેને આ સભ્યત્વ થાય છે અર્થાત–સ્વભાવથી જ જીવની રૂચિ જેના દ્વારા જિનધિત તમા થયા કરે છે, તે નિસર્ગરૂચિ છે (૧). ગુવાદિકના ઉપદેશથી તમા જે રૂચિ જીવને માટે પેદા કરવામાં આવે
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy