SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ विषय पृष्ठाङ्क का तीर्थङ्कर गणधर आदिने प्ररूपण किया है । कुशल मुनि बन्ध और मोक्षके उपायों को सर्वदा समझाते हैं। उन वन्ध और मोक्षके उपायों को जान कर भव्य आस्रवद्वारों से दूर रहे । जो मुनि अन्य दर्शनों में श्रदान नहीं रखते हैं-जो मुनि अनन्यदर्शी होते है-वे अनन्याराम होते है और जो अनन्याराम होते हैं वे अनन्यदर्शी होते हैं। कुशल मुनिका उपदेश पुण्यात्मा और तुच्छात्मा दोनों के लिये बराबर होता है। एसे मुनिका उपदेश द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुसार ही होता है। ३४८-३५४ १८ नवम मूत्र का अवतरण और नवम सूत्र । ३५५ १९ धर्मोपदेशक श्रोताकी परीक्षा करके धर्मोपदेश करे। ऐसा धर्मों पदेशक ही प्रशंसित होता है । यह मुनि अष्टविधर्मपाशसे बद्ध जीवों को छुडाता है, सभी दिशाओं में सर्वपरिज्ञाचारी होता है और हिंसादि स्थानों से लिप्त नहीं होता है। कर्मों के नाश करने में कुशल, बन्धप्रमोक्षान्वेषी-पत्नत्रय का अन्वेषणशीलवह मुनि न बद्ध है न मुक्त है। ३५६-३६३ २० दशम सत्रका अवतरण और दशम सत्र । ३६४ २१ तीर्थङ्कर, सामान्य केवली और रत्नत्रययुक्त साधुओं ने जैसा आचरण किया है वैसा ही आचरण दूसरे साधु करें, तीर्थङ्करादिकोंने जिस आचरणको प्रतिपिद्ध माना है उस आचरण से दूर रहें। ३६४-३६६ २२ ग्यारहवें मंत्र का अवतरण और ग्यारहवां मत्र ।। ३६७ २३ पश्यक-तीर्थङ्कर गणधरादिक नरकादिगतिके भागी नहीं होते, वाल-अज्ञानी तो निरन्तर होते रहते हैं। उद्देशसमाप्ति । द्वितीयाध्ययनसमाप्ति । ३६७ २४ द्वितीय अध्ययन की टीकाका उपसंहार। ३६८ ।। इति द्वितीयाध्ययनम् ।।
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy