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________________ D अध्य० २. उ. ६ त्यर्थः, किं तेनेत्याह-'एप' इत्यादि, एषः लोकसंयोगातिक्रमो न्यायः सन्मार्गः प्रोच्यते-कथ्यते, यद्वा-'नायः' इतिच्छाया, 'नायः' आत्मानं मोक्षं नयतीति नायः मुमुक्षुरनगारः, आषत्वात्कर्तरि घञ्प्रत्ययः, भगवदाज्ञानुयायी सुवसुमुनिरेव मोक्षं लभत इति तात्पर्यम् ॥ सू० ७॥ साम्प्रतं भगवदुपदेशमेव दर्शयति-'जं दुक्खं' इत्यादि। ___ मूलम्-जं दुक्खं पवेइयं इह माणवाणं तस्सदुक्खस्स कुसला परिन्नमुदाहरंति, इय कम्मं परिन्नाय सव्वसो, जे अणन्नदंसी से अणन्नारामे, जे अणन्नारामे से अणन्नदंसी, जहा पुण्णस्त कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थइ, जहा तुच्छस्स कत्थइ तहा पुण्णस्स कत्थइ, अविय हणे अणाइयमाणे ॥ सू० ८॥ रहते हैं, उनमें इनकी ममता नहीं होती है । आभ्यन्तर परिग्रह-रागद्वेष आदि या इनसे उत्पन्न आठ कर्मों के साथ के सम्बन्ध को सदा ये नाश करने में उद्यत रहते हैं। ये कोई भी ऐसा कार्य या प्रयत्न नहीं करते कि जिससे रागद्वेषादिक या उनकी परम्परा बढे या इनसे उत्पन्न कर्मों का बन्ध दृढ होता रहे । सदा ये वैसा ही प्रयत्न करते हैं कि जिससे रागदेषादिक का सम्बन्ध छूटे और संचित कमी की निर्जरा एवं आगामी कर्मों का संवर अर्थात् बन्ध का अभाव होता रहे । इस प्रकार का यह इनका लोकसंयोग-मातापितादि का सम्बन्ध-का त्याग ही सन्मार्ग है। अथवा "नाए” की छाया “नाय" भी है। आत्मा को जो मोक्ष प्राप्त कराता है वह नाय है, अर्थात् भगवान की आज्ञानुसार प्रवृत्ति करने वाला, ऐसा सुवस्तु मुनि ही मोक्ष का प्रापक होता है, अन्य नहीं ॥सू०७॥ ઉત્પન્ન થતાં આઠ કર્મોના સંબંધને નાશ કરવામાં સદા તે ઉદ્યમી રહે છે. તે કઈ પણ એવું કાર્ય કે પ્રયત્ન નથી કરતા કે જેનાથી રાગ દ્વેષાદિક અગર તેની પરંપરા વધે, અગર તેનાથી ઉત્પન્ન કર્મોના બંધ દઢ થતાં રહે. સદા તે એવો જ પ્રયત્ન કરે છે કે જેનાથી રાગદ્વેષાદિકને સંબંધ છુટે, અને સંચિત કર્મોની નિર્જરા અને આગામી કર્મોનો સંવર અર્થાત્ બંધને અભાવ થતો રહે. આવા પ્રકારને તેને લોકસંગ–માતા પિતાદિકના સંબંધનો ત્યાગ જ સમાગ छ. २५040 “नाए "नी छाय॥ " नायः" ५४ छे. मात्माने नाथी भाक्ष प्राप्त થાય તે નાય છે, અર્થાત્ ભગવાનની આજ્ઞાનુસાર પ્રવૃત્તિ કરવાવાળા એવા સુવસુ મુનિ જ મોક્ષના પ્રાપક બને છે, અન્ય નહિ | સૂત્ર ૭ છે
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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