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________________ २७६ आचारागसूत्रे पूर्वोक्तविशेषणविशिष्टोऽनगारः कीदृशो भवतीत्याह-' से भिक्खू ' इत्यादि। मूलम्-से भिक्खू कालन्ने बलन्ने मायन्ने खेयन्ने खणयन्ने विणयन्ने ससमयन्ने परसमयन्ने भावन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालाणुहाई अपडिपणे दुहओ छेत्ता नियाइ॥ सू०४॥ ___ छाया—स भिक्षुः कालज्ञो वलज्ञो मात्राज्ञः खेदज्ञः क्षणकज्ञो विनयज्ञः स्वसमयज्ञः परसमयज्ञो भावज्ञः परिग्रहमममायमानः कालानुष्ठायी, अप्रतिज्ञः, द्विधातश्छि वा नियाति ॥ मू० ४॥ ___टीका-'सभिक्षु'-रित्यादि। सः-पूर्वोक्तः समुत्थितेत्यादिमुनिगुणगणयुक्तो भिक्षुः चारित्रवान् कालज्ञः-काल-प्रतिलेखनादिसमयं जानातीति कालज्ञः । ___अथवा कालं-भिक्षाकालं जानातीति कालज्ञः, अकाले भैक्षाचरणेनात्मनः क्लेशाधिगमो ग्रामनिन्दा च जायते, ततश्च भगवदाज्ञाविराधकत्वेन खेदप्रकटनेन च चारित्रमालिन्यं भवत्यतोऽनुचितकाले भैक्षादिकं नाचरणीयमित्याद्यभिज्ञ इत्यर्थः । यद्वा कालं-सुभिक्षं दुर्भिक्षं दिनप्रमाणं रात्रिप्रमाण वा जानातीति कालज्ञः। पद से उद्गम दोषों का ग्रहण होता है, उससे उत्पादन और एषणा दोषों का भी ग्रहण हो जाता है । सू० ३॥ इन पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त अनगार कैसा होता है ? इसका खुलाशा करते हुए सूत्रकार कहते हैं-'से भिक्खू' इलादि। वह चारित्रवान् अनगार कि जिसका वर्णन 'समुहिए' इस द्वितीय सूत्र में किया जा चुका है वह; कालज्ञ-प्रतिलेखनादि क्रियाओं के अवसर का ज्ञाता होता है। अथवा कालज्ञ'-शब्द काअर्थ-काल का जानने वाला-ऐसा है। इससे यह बात सूत्रकार प्रकट करते हैं कि-साधु को भिक्षाचरण के काल में ही भिक्षा के लिये गमन करना चाहिये; क्योंकि अकाल में उसके निमित्त દોષોનું ગ્રહણ થાય છે તેનાથી ઉત્પાદન અને એષણાદિ દોષને પણ ગ્રહણ २६ तय छे. (सू 3) એવા પૂર્વોક્ત વિશેષણોથી યુકત અણગાર કેવા હોય છે? તેને ખુલાસો ४२ता सूत्रा२ ४९ छे'से भिक्खू' त्यादि. ते यारित्रवान भए॥२ ले वन समुहिए' २॥ गीत सूत्रमा ४२वामां आवे छे ते 'कालज्ञ'-'प्रतिमाहियामाना अक्सरना ज्ञात' होय छे, अथवा 'कालज्ञ' शम्नो मथ ' आणना शुवावा' डाय छे. मेथी २॥ वात સૂત્રકાર પ્રગટ કરે છે કે-સાધુઓ ભિક્ષાચરણના કાલમાં જ ભિક્ષા માટે જવું જોઈએ,
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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