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________________ आचारचिन्तामणि- टोका अध्य. १ उ. ५ . १ वनस्पतिप्ररूपणा ५९६ वनस्पतिभ्यस्त्वेतावान् विशेषः- प्रत्येकशरीराः परस्परं संमिश्रिता अपि भिन्ना एव विष्ठन्ति, साधारणशरीरास्त्वन्योन्यानुविद्धा इति । पत्रेषु प्रत्येकं मूलजीवादभिन्न एकैको जीवः । उक्तं हि प्रज्ञापनायामेकास्थिकबहुवीजवृक्षप्ररूपणावसरे-" पत्ता पत्तेयजीविया " इति । तथा - तालसरलनालिकेरवृक्षाणां स्कन्धश्चैकजीवः । तदुक्तम्" णाणा विठाणा, रुक्खाणं एगजीविया पत्ता | खंधोवि एगजीवो, ताल - सरल - नाकिएरीणं " | छाया - नानाविध संस्थानानि, वृक्षणाम् एकजीविकानि पत्राणि । स्कन्धोऽपि एकजीवः, तालसरल नारिकेलानाम् ॥ (प्रज्ञा० ) जीव आपस में मिले हुए भी भिन्न-भिन्न रहते हैं किन्तु साधारणशरीरवाले जीव आपस में अनुविद्ध - एक रूप होकर रहते हैं । तात्पर्य यह है कि प्रत्येकशरीरी जीवों का शरीर अलगअलग होता है किन्तु इन साधारणशरीरी जीवों का शरीर एक ही होता है । पत्तों में मूल जीव से भिन्न एक-एक जीव अलग-अलग होते हैं । प्रज्ञापना सूत्र में एकबीज और बहुबीज वृक्षों की प्ररूपणा करते हुए कहा है- 'पत्ता पत्तेयजीविया' अर्थात् पत्ते प्रत्येक जीव वाले हैं । तथा ताल, साल, नालिकेर आदि वृक्षों का स्कन्ध एक जीव है । कहा है 46 'नाना प्रकार के आकार वाले वृक्षों के पत्ते प्रत्येकजीव हैं और ताल, सरल arr नारियल के स्कन्ध एकजीव हैं >> જીવ પરસ્પર મળેલા છતાં પણ ભિન્ન-ભિન્ન રહે જીવ પરસ્પરમાં અનુવિદ્ધ એકરૂપ થઈને રહે છે. છવાનાં શરીર અલગ-અલગ હૈાય છે. કિન્તુ એકજ હાય છે. છે; પરન્તુ સાધારણ શરીરવાળા તાત્પર્ય એ છે કે પ્રત્યેકશરીરી આ સાધારણશરીરી જીવેનું શરીર પત્તાં-પાંદડાંમાં, મૃત્યુ જીવથી ભિન્ન એકએક જીવ અલગ-અલગ હોય છે. પ્રજ્ઞાપનાસૂત્રમાં એકબીજ અને ખડુબીજ વૃક્ષાની પ્રરૂપણા કરતા થકા કહ્યુ` છે કેઃ'पत्ता पत्तेयजीविया' अर्थात् पत्तां प्रत्येक लववाजा है. " તથા તાલ, સરલ, નાળિએર આદિ વૃક્ષાનાં સ્કંધ એક જીવ છે. કહ્યું છે કે:-- "नाना अमारना भा४रवाजा वृक्षानां पत्त-यहां अत्येव छे. सने ताटा, સરલ તથા નારિએલના "ધ એકત્ર છે,”
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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