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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य० १ उ. ४ मू. ८ अग्निसमारम्भदोपः ५७३ समारम्मेण अग्न्युपमर्दनरूपसावधव्यापारण, इमम् अग्निकार्य विहिनस्ति । तथा अग्निशख समारभमाण व्यापारयन् अन्यान् पृथिवीकायादीन, अनेकरूपान्त्रसाद स्थावरांच, प्राणान-माणिनो, विहिनस्ति-उपमर्दयति ।। सू० ८॥ अग्निशस्त्र समारभमाणा अनेकविधान जीवान् कथ विहिंसन्ति ? तत्मतिवोधयितुं श्रीसुधर्मा स्वामी माह-' से वैमि'. इत्यादि। मूलम् से बेमि-संति पाणा पुढवीनिस्सिया तणनिस्सिया पत्तनिस्सिया कट्टनिस्सिया गोमयनिस्सिया कयवरनिस्सिया, संवि संपाइमा पाणा आहच संपयंति, अगणिं च खलु पुढा एगे संघायमावज्जति, जे तत्य संघायमावति, सावध व्यापार कर के अग्निकाय की हिंसा करता है और अग्निकाय का आरंभ करता हुआ अन्य पृथ्वीकाय आदि नाना प्रकार के स्थावर एवं उस प्राणियों का धात करता है ।। सू० ८ ॥ ___ अग्निशस्त्र का आरंभ करने वाले अनेक प्रकार के जीवों की विराधना किस प्रकार करते हैं। यह समझाने के लिए श्रीसुधर्मा स्वामी कहते हैं:-' से वेमि.' इत्यादि। मलार्थ--वही मैं कहता हूँ--जीव पृथिवी के आश्रित हैं, तृण के आश्रित है, पतों के आश्रित हैं, काट के आश्रित हैं गोबर के आश्रित हैं, कचरे के आश्रित है. संपातिम जीव अचानक आकर अग्नि में पड़ जाते हैं, कोई-कोई अग्नि को बकर सिकर વ્યાપાર કરીને અનિકાયની હિંસા કરે છે. અને અગ્નિકાયને આરંભ કરવા સાથે અન્ય પૃથ્વીકાય આદિ નાના પ્રકારના રસ છે એ પ્રમાણે સ્થાવર પ્રાણીઓને धात रे छ. (. ८) અત્રિશસને આરંભ કરવાવાળા અનેક પ્રકારના છની વિરાધના કયા પ્રકાર ( a) छ? साना भाटे, श्री सुधर्मा पाभी ४६ छ-'से बेमि त्याठि. મૂલાથ-તે હું કહું છું-જીવ પૃથ્વીના આશ્રિત છે. તૃણને આશ્રિત છે. પત્તાંપાંદડાને આશ્રિત છે. લાકડાંને આશ્રિત છે. છાણને આશ્રિત છે. કચરાને આશ્રિત છે. સંપાતિયજીવ અચાનક આવીને અગ્નિમાં પડી જાય છે. જે સંકેચાઈ જાય છે. તે
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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