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________________ आचारचिन्तामणि- टीका अभ्य. १ उ. ३ सू. २ श्रद्धास्वरूपम् v अस्या लक्षणं तु शमसंवेगनिर्वेदानुकम्पाऽऽस्तिक्यानां मादुर्भावः । तत्र वीतरागमणीतमवचनतत्त्वाभिनिवेशवशेनाऽनन्तानुबन्धिकपायाणामनुदयः शम इत्युच्यते । यद्वा विषयासक्तिनिवृत्तिः शमः । तथा संवेगः- जिनप्रवचनानुसारेण नरकादिगतिषु ननाविधदुःखावलो - कनाद्भयम् यथा स्वकृतकर्मोदयान्नरकेषु क्षेत्रजन्यशीतोष्णादिदशविधवेदनासहनं, परमाधार्मिकदेवकृतं, परस्परोदीरितं चेति त्रिविधं दुःखं, तथा तिर्यक्षु-वाडनतर्जन - सुत्पिपासा - पारवश्य- भारारोपणाद्यनेकविधं दुःखं, मनुष्येषु - दारिद्र्य -- *** शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य का प्रकट हो जाना श्रद्धा का चिह्न है । वीतरागद्वारा प्ररूपित प्रवचन के तत्व में गाढी प्रीति होने से अनन्तानुबंधी कपायों का (क्रोध, मान, माया, लोभ, का ) उदय न होना शम कहलाता है । अथवा विषयों के प्रति आसक्ति हट जाना 'शम' है । गतियों में नाना प्रकार के दुःखों जैसे-" अपने किये कर्मों के जिन भगवान् के वचन के अनुसार नरक आदि को जानकर उन से भयभीत होना 'संवेग ' है । उदय से नरकों में क्षेत्रजन्य शीत-उष्ण ( सर्दी-गर्मी ) आदि दश प्रकार की वेदना, परमधामी देवों द्वारा दी जाने वाली वेदना और परस्पर नारकी जीवों द्वारा होने वाली वेदना, नरक में यह तीन तरह की वेदना है । तिथैचों में ताडना, तर्जना, भूख, ध्यास, पराधीनता, बोझा ढोना आदि अनेक प्रकार की वेदना है। मनुष्यों में दरिद्रता, શમ, વેગ, નિવેદ, અનુકંપા અને મસ્તિય વગેરે પ્રગટ થઈ જાય તે श्रद्धालु चिह्न छे. વીતરાગદ્વારા પ્રરૂપિત પ્રવચનનાં તત્ત્વમાં સજ્જડ પ્રીતિ થવાથી અનન્તાનુ अधी उपायाना (अघ, भान, भाया, बोलनेो) उद्दय थाय नहि ते शुभ उडवाय छे, अथवा विषयो अति व्यासहित डडी लय ते शम छे. જિન ભગવાનના વચન-અનુસાર નરક આદિ ગતિએમાં નાના પ્રકારના દુઃખને भागी ने तेनाथी लयलीत धुं ते 'संवेग' छे. ले-“पोताना असा उभेना अध्यथी नरक्षेमां क्षेत्रन्नन्य शीत-उष्णयु (शर्डी--गरभी) आदि इस प्रभारनी वेहना, परभाषाभी देवा દ્વારા જે થાય છે તે વેદના, અને પરસ્પર નારકી જીવેા દ્વારા થનારી વેદના, નરકમાં આ प्रभाो त्रषु प्रहारनी बेहना छे. तियथाभां ताडना, तना (भारदुं-तरछेोउवु) (लूख, तरस, પરાધીનતા, ખેાજા ઉપાડવા આદિ અનેક પ્રકારની વેદના છે. મનુષ્ચામાં દરિદ્રતા, દુર્ભાગ્ય,
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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