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________________ - ३३४ , आचारास्त्रे तत्र सूक्ष्माः द्विविधाः-पर्याप्ता अपर्याप्ताश्च, ते फज्जलकृपिकावत् सर्वलोकव्यापिनः । बादरा अपि द्विधा-पर्याप्तापर्याप्तभेदात । तत्र वादराः पर्याप्ता अपर्यास्ताच लोकस्यैकदेशे पृथिव्यप्रकाधोऽधःपाताल-भवन-नकरमस्तरादो सन्ति । ते विद्विधाः श्लण-खरमेदाद । तत्रणा वादरपृथिवी सप्तधाकृष्णनील-लोहित-पीत-शुक्ल-पण्ड-पनकभेदात् । खरवादरपृथिव्यास्तु चत्वारिंशद् (४०) भेदाः, तथाहि (१)शुद्धपृथिवी, (२)शर्करापृथिवी, (३)वालुकापृथिवी, (४)उपलः, (५)शिला, (६)लवणः, (७)उपः (८)अयः, (९)ताम्रः, (१०)पुः, (११)सीसकम्, (१२)रूप्यम्, (१३)सुवर्णम्, (१४)वजः, (१५)हरितालः (१६)हिङ्गलका, (१७)मनःशिला। - सूक्ष्म जीव भी दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । ये जीव काजल की कुप्पी के समान सम्पूर्ण लोक में भरे हुए हैं। बादर भी पर्याप्त और अपर्याप्त-दो प्रकार के हैं। ये जीव लोक के एक देश में हैं । इन के दो भेद हैं- लक्षण और सर । लक्षणबादरपृथ्वी के सात भेद हैं-कृष्ण नील लोहित (लाल) पीत शुक्ल पाण्डु और पनक खरवादर पृथ्वी के चालीस भेद हैं, वे इस प्रकार (१) शुद्ध--पथिवी, (२) शर्करा-पृथिवी, (३) बालुका--पथिवी, (४) उपल, (५) शिला, (६) लवण-नमक, (७) ऊप-क्षार, (८) लोहा, (९) तांबा, (१०) रागा, (११) सीसा, (१२) चांदी, (१३) सोना, (१४) वज़, (१५) हरिताल, (१६), होंगल, સૂક્ષમ જીવ પણ બે પ્રકારના છે. પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત-જીવ કૌજળની કુપીના સમાન સંપૂર્ણ લેકમાં ભરેલા છે. બાદર પણ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એમ બે પ્રકારના છે. એ જીવ લેકના એક દેશમાં છે. તેના બે ભેદ છે. શ્લફણ અને ખર, શ્વણ બાદર પૃથ્વીના સાત ले छे. gy, ala, aहित (मास) थोत, शुस, पड मन पन४. ५२-२ પૃથ્વીને ચાલીસ લે છે તે આ પ્રમાણે છે – (१) शुद्ध पृथिवी; (२) ४२ पृथिवी, (3) पाबु पृथिवी, (४) S6, (५) Nal, (6) Aqers, (७) 64-क्षार, (८) atsi, (e) aiRI, (१०),संt-kats, (११) सीसा, (१२) isी, (13) साना, (१४) १०१, (१५) रतास, (१६) मुख,
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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