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________________ -- आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ .६. कर्मसमारम्मा ____३९९ 'कुर्वतश्चापि समनुझो भविष्यामि, इति । अत्रापि 'च'-शब्दोपादानेन भविष्य कालिककृतकारितमियाद्वयस्यापि ग्रहणम् । 'समनुशः' इत्यस्य समनुज्ञाता अनुमोदयितेत्यर्थः । तथा च-(१) अहमन्यस्य कुर्वतोऽनुमोदयिता भविष्यामि, (२) स्वयमई करिष्यामि, (३) अहं कारयिष्यामि, इति भेदत्रयं क्रियायाः भवति । कुर्वतश्वापीत्यत्र 'अपि'-शब्दोपादानेन तासां नवानां क्रियाणां मनोवाकायभेदेन सप्तविशतिभा भवन्ति । - आत्मवाचकमहमिति पदं पुरस्कृत्य 'अकार्पम्' इत्यादिक्रियापदोपादानात "सर्वाः क्रिया आत्मपरिणामरूपाः" इति वोधितम् । एतेन "आत्मा निष्क्रिया" इति सांख्याधभिमतं निराकृतम् । 'यावि' शब्द में जो 'अपि' पद है, उस से यह समझना चाहिए कि इन नौ क्रियाओं के मन वचन और कायके मेद से सत्ताईस भेद हो जाते हैं। अर्थात् पूर्वोक्त नौ क्रियाएं मन से फो जाती हैं. वचन से की जाती हैं, और फाय से भी की जाती हैं, अतः उनके सत्ताईस भेद हो जाते हैं। आत्मा के वाचक अहम् (मैं) पदको प्रधान करके 'अकार्पम्' इत्यादि क्रियापदों का ग्रहण करने से यह सूचित किया गया है कि ये सब क्रियाएँ आत्मा का ही परिणाम हैं। इस सूचना से आत्माको निष्क्रिय मानने वाले सांख्य आदि मतों का निराकरण हो गया है। 'यावि, अपिप तथा से सभा स न ક્રિયાઓના મન, વચન અને કાયાના ભેદથી સત્તાવીશ ભંગ થાય છે. અર્થાત્ પૂર્વોક્ત નવ ક્રિયાઓ મનથી કરી શકાય છે. વચનથી અને કાયાથી પણ કરી શકાય છે. તેથી તેના સત્તાવીશ ભેદ થઈ જાય છે. सामान पाय 'अहम ई-पहने प्रधान सभान अकार्यम्' : कियाપદાના ગ્રહણ કરવાથી એ સુચન કરવામાં આવ્યું છે કે-એ સર્વ ક્રિયાઓ આત્માનું જ પરિણુમ છે. આ સૂચનથી આત્માને નિષ્ક્રિય માનવાવાળા સાંખ્ય આદિના મતનું નિરાકરણ થઈ ગયું છે.
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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