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________________ आचारचिन्तामणि-टोका अध्य.१ उ.१ ५.५ कर्मवादिप० तत्कारणत्वासिद्धेः। तद्वैचित्र्यस्य चादृष्टकर्मारच्यहेतुं विनाऽभावात् । शुभशरीरादीनां पुण्यकार्यत्वात् , अशुभशरीरादीनां पापकार्यत्वाच पुण्यपापभेदेन तस्य कर्मणो द्वैविध्य सिद्धम् । ___पुण्यं पापं चेति द्वे कर्मणी भिन्ने स्वतन्त्ररूपे स्तः, इत्यत्रागमोऽपि प्रमाणम् । उक्तश्च स्थानाङ्गसूत्रे-" एगे पुण्णे। एगे पावे" इति । एवमेव समवायाङ्गेऽपि। सर्वघातिप्रकृतयः-- __(१) केवलज्ञानावरणीयम् । (२) केवलदर्शनावरणीयम् । (३) निद्रा, (४) निदानिद्रा, (५) प्रचला, (६) प्रथलामचला, (७) स्त्यानद्धिः, (८-११) अनन्तानुवन्धिकपायचतुष्टयम् , (१२-१५) अमत्याख्यानकपायचतुष्टयम् , यह विचित्रता अदृष्ट कारण-कर्म के विना नहीं हो सकती, शुभ शरीर आदि पुण्य का कार्य है और अशुभ शरीर आदि पाप का कार्य है । अतः पुण्य और पाप के भेद से कमें दो प्रकार का सिद्ध होता है। पुण्यकर्म और पापकर्म दोनों स्वतन्त्र-भिन्न हैं, इस विषय में आगम भी प्रमाण है । स्थानाङ्ग सूत्र में कहा है-'पुण्य एक है पाप एक है। इसी प्रकार समवायाङ्गसूत्र में भी कहा है। सर्वघाती प्रकृतिया(१) केवलज्ञानावरणीय, (२) केवलदर्शनावरणीय, (३) निद्रा, (४) निद्रानिद्रा, (५) प्रचला, (६) प्रचलाप्रचला, (७) त्यानद्धि, (८-११) अनन्तानुवन्धी-क्रोध, मान, माया, लोभ, (१२-१५) अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध, मान, माया, लोभ, (१६-१९) प्रत्याख्यानाઆ વિચિત્રતા અદઈ કારણુ-કર્મના વિના હેઈ શકે નહિ. શુભ શરીર આદિ પયન કાર્ય છે. અને અશુભ શરીર આદિ પાપનું કાર્ય છે. તે કારણથી પુણ્ય અને પાપના ભેદથી કર્મ બે પ્રકારનાં સિદ્ધ થાય છે. પુણ્યકર્મ અને પાપકર્મ અને સ્વતંત્ર-ભિન્ન છે. આ વિષયમાં આગમ પણ प्रमाणु छ, स्थानां। सूत्रमा धुं छ-" पुष्य मे छ, पा५ औ छ." सर प्रभारी समवायाङ्ग-सूत्रमा ५९ :युं छे. सर्वधाती प्रतिमा(Banाना२४ीय, (२) ना१२९१य, (3) निद्रा, (४) निद्रनिद्रा (५) प्रत्यक्षा (6) प्रन्यसायला, (७) सत्यानाद, (८-११) मनन्तानुधा-थ, मान, भायात,(१२-१५)मप्रज्यानावर-ध, भान,माया, ,(१६-१८)प्रत्याभ्याना१२६५
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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