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________________ - - आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ २.५, कर्मवादिप्र० ३२७ एषु पञ्चसु कारणेसु कपायः प्रधानम् । स च क्रोधमानमायालोममेदाचतुर्विधः । चतुविधोऽप्ययं कपायो रागद्वेपान्तर्गत एवास्ति । उक्तञ्च "दोहिं ठाणेहिं पायकम्मा बंधति, तंजहा-रागेण य, दोसेण य । रागे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-माया य लोभे य । दोसे दुविहे पण्णते, तंजहा-कोहे य माणे य" (स्था० स्थान २ उ०) वन्धश्चतुर्विधः-प्रकृति-स्थित्य-नुभाव-प्रदेशभेदात् । उक्तञ्च "चउविहे बंधे पण्णत्ते, तंजहा-पगइबंधे१, ठिइबंधेर, अणुभावबंधे३, , पएसबंधे४।" (समवायाङ्ग. समवाय४) इन पांच कारणों में कपाय प्रधान है। क्रोध, मान, माया और लोभ के भेदसे वह चार प्रकार का है। कपाय के ये चारों भेद राग और द्वेप में ही अन्तर्गत हो जाते हैं। कहा भी है_ "दो स्थानों से पाप कर्मों का बन्ध होता है। वह इस प्रकार-राग से और वेप से । राग दो प्रकार का है-माया और लोभ । द्वेप भी दो प्रकार का है- क्रोध और मान" । (स्था० स्थान २ उ. २) बन्ध चार प्रकार का है-(१) प्रकृति-वन्ध, (२) स्थिति बन्ध, (३) अनुभाव-बन्ध; और (४) प्रदेश-बन्ध । कहा भी है "बन्ध चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-(१) प्रकृतिबन्ध, (२) स्थितिवन्ध, (३) अनुभावबन्ध, (४) प्रदेशबन्ध" । (सम. स. ४) આ પાંચ કારણોમાં કષાય પ્રધાન છે- મુખ્ય છે. ક્રોધ, માન, માયા અને લોભના ભેદથી તે ચાર પ્રકારના છે. કષાયના તે ચારે ય ભેદ રાગ–અને દ્વેષમાં સમાઈ જાય છે. કહ્યું છે કે – બે સ્થાનેથી પાપકર્મોને બંધ થાય છે. તે આ પ્રમાણે છે–રાગથી અને શ્રેષથી. રાગ બે પ્રકાર છે-માયા અને લોભ. દેવ પણ બે પ્રકારને છે–ફોધ અને __ भान" (स्था. स्थान २-5. २). मध या२ ४॥२॥ छ-(१) प्रकृतिमध, (२) स्थितिमध, (3) अनुमान (४) प्रदेशमध. ४छु ५५ छ मध ४२ना छ. (१) प्रतिमा, (२) स्थितिमा, (3) मनुमा५५, (४) प्रदेशमध" (सभ० से. ४)
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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