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________________ २८० आचाराङ्गमा पञ्चधा-जलचर(१)-स्थलचर(२)-खेचरो(३)-र-परिसपै(४)-भुजपरिसर्पभेदात् । तत्र जलचरा मत्स्यमकरादयः, स्थलचरा गोमहिप्यादयः, · खेचराः मयूरादयः, उरम्परिसः सदियः, भुजपरिसर्पाः गोधादयः। ___ मनुष्या द्विविधाः-कर्मभूमिजाः, अकर्मभूमिजाः। यत्र जाता मनुष्याः सिध्यन्ति; बुध्यन्ते, परिनिर्वान्ति; सर्वदुःखानामन्त्रं कुर्वन्ति सा कर्मभूमिः। अत्रैव संसारान्तप्राप्तिकारकस्य रत्नत्रयरूपमोक्षमार्गस्य विज्ञातारः कर्तार उपदेष्टारश्व भगवन्तस्तीर्थङ्करा अवतरन्ति । ते च स्वयं संसारार्णवं तरन्ति, परान् भन्यानपि, तारयन्ति । अर्धत्तीयद्वीपाभ्यन्तरे कर्मभूमयः पञ्चदशक्षेत्ररूपा भवन्ति-पञ्च संमूर्छिम के भी पांच मेद हैं-(१) जलचर, (२) स्थलचर, (३) खेचर, (४) उर:परिसर्प और (५) मुजारिसर्प । मच्छ, मकर, आदि जल के जीव जलचर कहलाते हैं। गार भंस आदि स्थलचर कहलाते हैं। मयूर आदि खेचर कहलाते हैं। सर्प आदि उरःपरिसर्प और गुहेरा (गोह ) आदि मुजपरिसर्प कहलाते हैं। मनुष्य दो प्रकार के हैं-कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज । जहाँ उत्पन्न होकर जीव सिद्ध बुद्ध होते हैं, निर्वाण प्राप्त करते हैं और सब दुःखों का अन्त करते हैं, उसे कर्मभूमि कहते है। संसार का अन्त करने वाले, रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग के ज्ञाता, कर्ता और उपदेशक तीर्थकर भगवान कर्मभूमि में ही उत्पन्न होते हैं। वे स्वयं संसार समुद्र तरते हैं और दूसरे भव्य जीवों को भी तारते हैं। अढाई द्वीप में पन्द्रह फर्मभूमिया हैं-पाच भरत क्षेत्र में, पांच ऐरवत क्षेत्र में, और पांच महाविदेह में। पांच (५) सुपरिस. भ२७, भ४२ (भार) साहि ना १ सयर पाय छे. ગાય, ભેંસ આદિ સ્થલચર કહેવાય છે મયૂર (માર) આદિ ખેચર કહેવાય છે. સર્ષ આદિ ઉરપરિસર્પ, અને ઘાયરા આદિ ભુજપરિસર્ષ છે. भनुष्य मे ना छ--(१) ४मभूमिम, (२) म४मभूमि०४, armi Sपन्न થઈને જીવ સિદ્ધ બુદ્ધ હોય છે, નિવણ પ્રાપ્ત કરે છે, અને સર્વ દુઃખોનો અંત કરે છે તેને કર્મભૂમિ કહે છે. સંસારને અંત કરવાવાળા, રત્નત્રયરૂપ મોક્ષમાર્ગને જ્ઞાતા કર્તા, અને ઉપદેશક તીર્થંકર ભગવાન્ કર્મભૂમિમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. તે સ્વયે સંસાર સમુદ્રને તરે છે અને બીજા ભવ્ય જીવોને પણ તારે છે. અહી દ્વિપમાં પંદર કર્મભૂમિ છે-પાંચ ભરતક્ષેત્રમાં, પાંચ એરવત ક્ષેત્રમાં અને
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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