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________________ १९२ । मानता __ आधारासूत्र अभावानीवः पूर्वभयं न जानाति।। "अण्णयरीओ वा दिसाओ" इति। यावत्यो दिशः सन्ति तत्र कस्याश्चिदेकस्या दिशः समागतोऽस्मीति स्वागमनावधिदिशं सामान्यरूपेणापि न जानन्ति कतिचन संजिनः, सर्वदिग्ज्ञानामावेनान्यतरदिराज्ञानासंभवादिति भावः । "अणुदिसाओवा" इति । ईशानादयः कोणरूपा विदिशोऽनुदिशः । तासां मध्ये कस्याधिदेकस्या अनुदिशः समागतोऽस्मीति सामान्यरूपेण, तर्थशान्या आग्नेय्या इत्यादि विशेषरूपेण च स्वागत्यवधिभूताया अनुदिशो ज्ञानं न भवतीत्यभिमायः। अथ दिशः कति सन्ति ? उच्यते-संक्षेपतो द्रव्य-भाव-भेदेन दिशा द्विविधा। अपना पूर्व भव नहीं जानता। 'अण्णयरीओ वा दिसाओ' अर्थात् जितनी दिशाएं हैं, उनमें किसी भी एक दिशा से मैं आया हूँ, इस प्रकार अपने आगमन की दिशा को सामान्यरूप से भी कितनेक संज्ञी नहीं जानते हैं । क्यों कि सभी दिशओं के ज्ञानके अभाव में किसी एक दिशा का ज्ञान • होना असम्भव ही है । 'अणुदिशाओवा' ईशान वगैरह कोगरूप विदिशाओं को अनुदिशा • कहते हैं। उनमें से सामान्यरूप से किसी भी एक दिशा से मैं आया हूँ, या विशेषरूप . से ईशान, आग्नेय आदि विदिशा से मैं आया हूँ, ऐसा ज्ञान नहीं होता। ' प्रश्न-दिशाएँ कितनी हैं ? उत्तर-संक्षेप से दिशा के दो भेद हैं-द्रव्य-दिशा, और भाव-दिशा । पूर्व, __ मसाथी ७५ पोताना पूर्वसपने तो नथी. . ... - - - - . 'अण्णयरीओ वा दिसाओ' यात सी शाम , तमाथी पy એક દિશાથી હું આવ્યો છું. આ પ્રમાણે પિતાના આગમનની દિશાને સામાન્ય , રૂપથી પણ કેટલાંક સંજ્ઞી જાણતા નથી. કેમકે સર્વ દિશાઓના જ્ઞાનના અભાવથી 3 से हिशानुं ज्ञान थषु ते मसलप छे. 'अणुदिसाओ वा. शान पोरे आएर , રૂપ વિદિશાઓને અનુદિશા કહે છે. તેમાંથી સામાન્યપે કઈ પ્રણ એક દિશાથી 'હું આવ્યો છું, અર્થવા વિશેષરૂપથી ઈશાને આમેય આદિ વિદિશાએથી હું साये छु. मेj san यतु नथी. ... प्रश्न-शाम सी छ ? : - . :: 6त्तर-सपथी शान मे ले..द्र०यदिशा अने.शि. , पश्चिम, उत्तर
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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