SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . .. आचारांगसूत्र . (५) गवेपणा• मोर्गणानन्तरमनुपलभ्यस्य जीवादिपदार्थस्य सर्वतः परिभावन-निर्णयाभिमुखविचारपरायणता गवेपणा। (६) संज्ञाइन्द्रियजन्यज्ञानविषयीभूतस्यार्थस्य पुनर्देर्शनेन " स एवाय"-मिति जायमानं ज्ञानं संज्ञा । यथा-"स एवायमाहारकलब्धिमान् महात्मा, यो मया कानने दृष्टः" । . . (७) स्मृतिःअनुभूतार्थविषयकं ज्ञानं स्मृतिः । इदं ज्ञानमतीतविषयकं भवति । अत्रोदाहारणं यथा (५) गवेपणामार्गणा के पश्चात् उपलब्ध न होने वाला जीवादि पदार्थों का पूरी तरह विचार करना अर्थात् निर्णय के अभिमुख विचारपरायणता गपेपणा है। . (६) संज्ञाइन्द्रियजन्य ज्ञानके विषयभूत पदार्थ का पुनः - दर्शन होने पर 'यह वही है'. इस प्रकार से उत्पन्न होने वाला ज्ञान संज्ञा कहलाता है। जैसे-"यह वहीं आहारकलब्धि वाले महात्मा हैं जिन्हें मैने वनमें देखा था। (७) स्मृतिपहले अनुभव किये हुए पदार्थ लो विषय करनेवाला ज्ञान स्मृति कहलाता है । स्मृतिज्ञान अतीतविषयक ही होता है। यहां एक उदाहरण है, जैसे-~ (५) ५९।। . . માગણની ૫છી ઉપલબ્ધ નહિ થવા વાળા જીવાદિ પદાર્થોને પૂરી રીતે વિચાર ४२वो. अर्थात् नियन,अलिभुम-विया२ परायणतान गवेषण! ४ . . . :: . . : " .. . . . .(६) - . इन्द्रियान्य ज्ञाननाविषयभूत पहायानुश शन, Adi " . छ.". એ પ્રકારે ઉત્પન્ન થવા વાળું જ્ઞાન તે સંજ્ઞા કહેવાય છે. જેમ-“આ તેજ આહારકલવાળા મહાત્મા છે જેને મેં વનમાં જોયા હતા.” ___ . . (७) स्मृतिપ્રથમ અનુભવ કરેલા પદાર્થને વિષય-કરનારૂં જ્ઞાન સ્મૃતિ કહેવાય છે. સ્મૃતિ-જ્ઞાન भतीत विषय ४, (वाती या प्रसंग.) डाय छ माडी 23 GETRY .
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy