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________________ आचारागमूत्रे इदमेवाभिप्रेत्य भगवताऽभिहितम्-- " अहम्मो ठाणलक्षणो" इति ( उत्तरा. अ. २८) . 'अधर्मः स्थानलक्षणः' इति च्छाया । लक्ष्यते दृश्यते परिचीयते अनेनेति लक्षण-परिचायकं ज्ञापकम्। स्थान=स्थितिरेव लक्षण-ज्ञापकं यस्याऽसाविति स्थानलक्षणः । स्थितिकार्यानुमेयोऽधर्मास्तिकाय इत्याशयः । अधर्मास्तिकायस्य-(१) अरूपित्वम् , (२) अवेतनत्वम् , (३) अक्रियत्वम् । ' (४) स्थितिसहायकत्वमिति गुणाः । (१) स्कन्धः, (२) देशः, (३) प्रदेशः, (४) अगुरुलघुत्वं चेति पर्यायाः। इसी अभिप्राय से भगवान ने कहा-~-"अहम्मो ठाणलक्षणो" अधर्मास्तिकाय स्थिति लक्षण वाला है । (उत्तरा० अ० २८) जिस के द्वारा कोई वस्तु लखी जाय (देखी जाय) या जो, वस्तु का परिचायक (परिचय कराने वाला) हो वह लक्षण कहलाता है। स्थान अर्थात स्थिति ही जिस का लक्षण है, अर्थात् स्थितिरूप कार्य से जिस का अनुमान होता है उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं । अधर्मास्तिकाय के गुण-(१) अरूपित्व (२) अचेतनत्व (३) अक्रियत्व और स्थितिसहायकत्व है। (१) स्कन्ध, (२) देश (३) प्रदेश, और :(४) अगुरुलधुत्व, अधर्मास्तिकाय के पर्याय हैं। में लिप्रायथी मापाने खुछ है-" अहम्मो ठाणलक्खणो" अपमास्तिय स्थिति सक्ष पाणा छे. (उत्तराध्ययन. म. २८) ... - જેના દ્વારા કઈ વસ્તુ લખી શકાય (દેખી શકાય) અથવા જે વસ્તુને પરિચય કરાવનાર હોય તે લક્ષણ કહેવાય છે. સ્થાન અર્થાત્ સ્થિતિ જ જેનું લક્ષણ છે અર્થાત્ સ્થિતિરૂપ કાર્યથી જેનું અનુમાન થાય છે, તેને અધમસ્તિકાય કહે છે. · मायना गुY-(१) पित्य (२) मयेतनत्य (3) अश्यिय भने (४) स्थितिसहाय४त्व छ. . (१) अध, (२) देश, (3) प्रदेश, भने (४) भJ३वधुत्व, मे मस्ति . કાયના પર્યાય છે.
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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