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________________ यह परिणाम है कि उनकी छत्रच्छाया में रिसर्च-स्कॉलर साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म., एम.ए. ने “भावना योग एक विश्लेषण" पर अपना पी-एच.डी. का शोध-ग्रंथ परिसमाप्त कर लिया है, जो गहन अध्ययन, चिंतन और अनुसंधान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। उनके इस शोध-कार्य में मेरा सतत मार्गदर्शन और सहयोग रहा। रिसर्च-स्कॉलर साध्वी श्री चारित्रशीलाजी म., एम.ए. “णमो लोए सव्व साहूणं" पर पी-एच. डी. के लिए मेरे मार्गदर्शन और सहयोग से शोध-कार्य में संलग्न है। आशा है, चेन्नई-प्रवास में उनका भी यह शोध-कार्य संपन्न होगा। यहाँ यह अवगत कराते हुए बड़ी प्रसन्नता होती है कि साध्वी श्री चारित्रशीलाजी म. ने अपनी ज्येष्ठ गुरु-भगिनीवर्या डॉ. श्री धर्मशीलाजी म. के शोध-ग्रंथ हेतु अपेक्षित सामग्री-संकलन में तथा शोध-ग्रंथ की पांडुलिपि (प्रस-कापी) तैयार करने में समर्पण-भाव से अत्यधिक श्रम किया। वे अपने अध्ययन और अनुसंधान को गौण कर महीनों इस कार्य में संलग्न रहीं, जो श्रामण्य के सामाष्टिक ऐक्य या अद्वैत-भाव का सूचक है। ___ इस ग्रन्थ के प्रकाशन में उज्ज्वल धर्म ट्रस्ट, मुंबई, श्री एस. एस. जैन संघ, अयनावरम् तथा चेन्नई महानगर के साहित्यानुरागी महानुभावों का जो सहयोग रहा, वह सर्वथा प्रशंसनीय है। यद्यपि समय बहुत कम था, किंतु महासतीजी डॉ. धर्मशीलाजी म. के ६२ वें जन्म-दिन के शुभावसर पर इस ग्रंथ का विमोचन हो, यह कार्यकर्ताओं की भावना रही, तदनुसार ग्रंथ का मुद्रण प्रारंभ हुआ। मुद्रण-विषयक सज्जा और अक्षरगमनिका (Proof-reading) में श्रीयुत डॉ. भद्रेशकुमारजी जैन, एम.ए., पी-एच.डी. (जैन प्रकाशन केन्द्र, चेन्नई) तथा मेरे विद्यार्थी श्री महेंद्रकुमारजी रांकावत, बी.एस.सी., एम. ए, रिसर्च-स्कॉलर ने अहर्निश तत्परतापूर्वक जो श्रम किया, वह धन्यवादाह है। महासतीजी के श्रुतध्यवसाय तथा समस्त ज्ञात-अज्ञात सहयोगी-वृंद के अथक प्रयासों से ही यह ग्रंथ पाठकों के कर-कमलों में प्रस्तुत है। __तत्त्व-ज्ञान में रुचिशील, जीवन के परमशांतिमय लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु समुद्यत एवं उत्तरोत्तर बढ़ते हुए भौतिकवाद से संत्रस्त मानव समाज के लिए यह ग्रंथ नि:संदेह बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसी आशा है। भाद्रपद, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, दि. २३-८-२००० अयनावरम्, चेन्नै स्थायी पता: कैवल्य धाम, | सरदारशहर (राजस्थान) - ३३१४०३. प्रोफेसर डॉ. छगनलाल शास्त्री, एम.ए. (त्रय), पी-एच.डी, काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि, पूर्व प्राध्यापकप्राकृत-जैन शोध संस्थान, वैशाली तथा जैन विद्या विभाग, मद्रास विश्वविद्यालय,
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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