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________________ नमस्कारविवेचनम् क्रियमाणे जपे ध्याने निदानरहिते सदा। नमस्कारे महाश्रद्धा स्वयमेवोपजायते।।२४।। निदानरहित (निष्कामभाव से) ध्यान और-जप करने पर स्वयं ही नमस्कार मन्त्र पर श्रद्धा उत्पन्न होती है।।२४।। जगत्त्रये चमत्कारो दृश्यते हि यदा तदा। नमस्कारे परं तस्य कारणं प्राप्यते सदा।।२५।। तीनों लोक में जब कोई चमत्कार देखने को मिलता है तो उस चमत्कार का मूल कारण नमस्कार में ही मिलता है।।२५।। सर्वसङ्कल्पसिद्धिः स्यात् क्षणादेव न विस्मयः। नमस्कारे मनाग् दत्ते चित्ते सद्र्वनुग्रहात्।।२६।। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सद्गुरु की कृपा से नमस्कार मन्त्र में थोडा भी मन लगाने से सभी कामनाओं की तत्काल सिद्धि होती है।।२६।। श्वेतरक्तादिवर्णानां ध्यानात्पञ्चपदेषु वै। नमस्कारेऽत्र सम्प्रोक्ता काम्यसिद्धिर्न संशयः।।२७।। नमस्कार में पंच पदों पर श्वेत-रक्त आदि वर्गों का ध्यान करने से निश्चित ही कामना की पूर्ति होती है ऐसा कहा गया है।।२७।। उपद्रवा विनश्यन्ति भूतप्रेतादिसम्भवाः। नमस्कारे स्मृते सद्यस्तमांस्यर्कोदये यथा।।२८॥ भूतप्रेत आदि जन्य उपद्रव नमस्कार के स्मरण तुरंत ही मिट जाते हैं जैसे सूर्योदय होने से अन्धकार नष्ट होता है।।२८।। तस्य नश्यति दुर्ध्यानं भवसन्ततिकारणम्। नमस्कारे सदाभ्यासान्मनो यस्य निमज्जति।।२९।। सदा अभ्यास के कारण जिसका मन नमस्कार मन्त्र में सदा लीन रहता हैं उसका भव का कारण रूप दुर्ध्यान नष्ट होता है।।२९।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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