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________________ ।।नमस्कारविवेचनम्।। नत्वा वीरं गुरुं भक्त्या जननी जनकं तथा। मन्त्रासक्तो हि कुर्वेऽहं नमस्कारविवेचनम्।।१।। भगवान् महावीर, गुरु एवं माता-पिता को भक्तिपूर्वक प्रणाम करके नमस्कार मन्त्र का आसक्त मैं नमस्कार विवेचन नामक ग्रन्थ बनाता हूँ।।१।। यस्य लोकोत्तरे मन्त्रे सर्वकार्यप्रसाधके। नमस्कारे मनो लग्नं तस्यैवाभ्युदयो ध्रुवम्।।२।। सभी कार्यों को सिद्ध करनेवाले लोकोत्तर नमस्कार मन्त्र में जिसका मन लग गया है, उसका निश्चित ही अभ्युदय होता है।।२।। मोक्षबीजे 'नमो' मन्त्रे भावशुद्धिप्रदे सदा। नमस्कारे भवेनिष्ठा महामाङ्गल्यदायिनी।।३।। भावशुद्धि का प्रदान करनेवाले, मोक्ष के बीजभूत नमो मन्त्ररूप नमस्कार में निष्ठा महामंगल प्रदान करनेवाली है।।३।। भुक्तिमुक्तिप्रदे मन्त्रे यस्य लोकोत्तमे सदा। नमस्कारे परा प्रीतिस्तस्य मुक्तिर्न संशयः।।४॥ जिसका भोग और मोक्ष देनेवाले उत्तम नमस्कार मन्त्र से उत्कृष्ट प्रेम होता है, निश्चित ही उसकी मुक्ति होती है।।४।। अचिन्त्यशक्तिसम्पन्ने सर्वाभीष्टप्रदायके। नमस्कारे स्थिते स्वान्ते किमसाध्यं जगत्त्रये।।५।। अकल्पनीय शक्ति से युक्त, सर्व अभीष्ट फल को देनेवाला ऐसा नमस्कार मन्त्र जिसके हृदय में विद्यमान हो तो तीनों लोक में उसके लिए क्या असाध्य है?
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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