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________________ ४४ मनो विक्षेपशून्यं तु प्रशान्तं जायते ध्रुवम्। उपैति ब्रह्मभावं च नमस्कारान्न संशयः ।।४१।। नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से मन की चंचलता दूर होकर प्रशान्तता को प्राप्त करके ब्रह्मत्व के पास पहुँचता है इसमें कोई संदेह नहीं । । ४१ ।। योगकल्पलता लीनत्वान्मनसः स्वस्मिन्महावाक्यार्थचिन्तनात्। भवत्येव परानन्दो नमस्कारान्न संशयः । ।४२।। नमस्कार महामन्त्र के प्रसाद स्वरूप मन अन्तर्लीन होता है तब शास्त्र के अर्थ के (महावाक्यार्थ के) चिन्तन से परमानन्द (अलौकिक आनन्द) होता है इसमें कोई संदेह नहीं।। ४२ ।। बहिर्वृत्तिविनाशश्च विषयानन्दवर्जनम्। योगबीजस्य सम्प्राप्तिर्नमस्कारान्न संशयः ।।४३।। नमस्कार मंत्र से मन के बहिर्मुखी प्रवृत्ति का त्याग विषयों के आनन्द से निवृत्ति एवं योगबीज की प्राप्ति होती है इसमें कोई संदेह नहीं।।४३।। कामविवर्जिते चित्ते शुध्दे तत्त्वस्मृतिस्तथा । आत्मन्येव भवेत्प्रीतिर्नमस्कारान्न संशयः । । ४४ ।। नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से इच्छा रहित चित्त शुद्ध होने पर तत्त्व का स्मरण होता है और आत्मा के ऊपर प्रेम होता है इसमें कोई संदेह नहीं । ४४ ।। अधर्मात्स्यान्निवृत्तिश्च धर्मे प्रवृत्तिरेव च । सदा लोकोपकारश्च नमस्कारान्न संशयः ।। ४५ ।। नमस्कार महामन्त्र से अधर्म से निवृत्ति, धर्म में प्रवृत्ति एवं लोकोपकार की भावना जगती है इसमें कोई संदेह नहीं । । ४५ ।। भवन्त्येवानुकूलानि पञ्चभूतानि सत्वरम् । क्षीयन्तेऽपि खलाश्चैव नमस्कारान्न संशयः ।।४६।। नमस्कार मन्त्र से शीघ्र ही पञ्चभूत अनुकूल होते हैं तथा दुष्टों का क्षय होता
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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