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________________ योगकल्पलता मोक्षैकसाधनत्वात्तु हृदि संस्थाप्य भावतः। सर्वकर्मविनाशाय नमस्कारं सदा स्मर।।१२।। मोक्ष का एकमात्र साधन होने से इसे भाव से हृदय में स्थापित करके सभी कर्मों के क्षय के लिए सदा नमस्कार का ध्यान कर।।१२।। ध्यानतन्त्रं महामन्त्रमर्थतः कथितं जिनैः। निधानं सर्वविद्यानां नमस्कारं सदा स्मर।।१३।। जिनेश्वरों ने अर्थ से महामन्त्र को ध्यान का तन्त्रशास्त्र एवं सभी विद्याओं का भंडार कहा है अतः सदा नमस्कार का ध्यान कर।।१३।। ब्रह्मतत्त्वावबोधाय चेदिच्छा तव वस्तुतः। त्यक्त्वा त्वमन्यमन्त्राँस्तु नमस्कारं सदा स्मर।।१४।। वास्तविक रूप में तेरी ब्रह्मतत्त्व को जानने की इच्छा है, तो शीघ्र ही अन्य सभी मन्त्रों को छोडकर नमस्कार का ध्यान कर।।१४।। चित्तशुद्धिकरं मन्त्रं जिनभावप्रदायकम्। गुह्याद्रुह्यतरं मन्त्रं नमस्कारं सदा स्मर।।१५।। चित्त को शुद्ध करनेवाला एवं जिनशासन में प्रेम करनेवाला यह गुप्त से भी गोपनीय मन्त्र नमस्कार का सदा ध्यान कर।।१५।। समतालक्षणं मन्त्रं रागद्वेषप्रणाशकम्। सूक्ष्माराधनरूपं तं नमस्कारं सदा स्मर।।१६।। रागद्वेष को मिटानेवाला समता गुण से युक्त सूक्ष्म आराधनरूप उस नमस्कार मन्त्र का ध्यान कर।।१६।। सम्प्रदायेषु सर्वेषु मान्यं सर्वविचक्षणैः। अन्तर्यागसमायुक्तं नमस्कारं सदा स्मर।।१७।। सभी बुद्धिमानों के द्वारा सभी सम्प्रदायों में यह मान्य है विद्वानों ने इसे अन्तर्याग (मानसिक यज्ञ-ध्यान आदि क्रिया) का कारण कहा है अतः तू सदा नमस्कार का ध्यान कर।।१७।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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