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________________ योगकल्पलता यह नमस्कार मन्त्र जिनशासन का सार है। भव्यजीव मोक्षरूपी विभूति प्राप्ति के लिए विधिपूर्वक इसकी उपासना करते हैं।।४१।। चिन्तितो मनसा नूनममोघः किं न साधयेत्। तस्मादेव सदा ध्येयो नमस्कारो विभावितः।।४२।। मन से चिन्तित लोग चिन्तामिटाने में सफल अस्त्ररूप नमस्कार की साधना क्यों न करें? अतएव विशेषभाव से यह नमस्कार मन्त्र का ध्यान करना चाहिए।।४२।। ब्रह्मज्योतिर्मयो मन्त्रः सर्वतेजोमयस्तथा। विश्रुतस्त्रिषु लोकेषु नमस्कारो हि सर्वदा।।४३।। हर समय यह नमस्कार महामन्त्र शाश्वत ज्योतिवाला है जिसमें तीनों लोक में प्रख्यात सभी तेज हैं।।४३।। सर्वदुःखहरो मन्त्रः सर्वसौख्यप्रदो ध्रुवम्। वाचको वन्दनीयानां नमस्कारो हि तारकः।।४४।। निश्चित ही यह मन्त्र सभी दुःखों को दूर करके सभी सुखों को देनेवाला है। वन्दनीयों का वाचक है यही नमस्कार मन्त्र तारण करनेवाला है।।४४।। सर्वगुणाकरो ज्ञेयः सर्वदेवैः सुसेवितः। स्वात्मबोधप्रदो ह्येष नमस्कारोऽस्तु सिद्धये।।५।। सभी देवों द्वारा सेवित, सभी गुणों की खान सभी को ज्ञेय एवं आत्मज्ञान करानेवाला यह नमस्कार सिद्धि के लिए हो।।४५।। सेवनीयः सवीर्यो हि मनःप्राणात्मयोगतः। लब्ध्वाऽयं विधिना मन्त्रो नमस्कारो गुरोर्मुखात्।।४६।। गुरुमुख से विधिपूर्वक मन्त्र ग्रहण करके (दीक्षा लेकर) मन और आत्मा को एक करके (विचार मुक्त होकर) मोक्ष का मूल कारण नमस्कार मन्त्र का सेवन करना चाहिए।।४६।। ध्यानादात्मप्रकाशं यः शिवश्रियं च यच्छति। योगिभिः स सदा स्वान्ते नमस्कारो निषेव्यते।।४७।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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