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________________ १०० योगकल्पलता आशे! प्राणप्रिये! देवि! प्रणम्य त्वां मुदान्वितः। बहिस्सन्धानशून्योऽहमन्तस्सौख्यं भजे सदा।।६४।। आशे! भगवति देवि ! मैं प्रसन्न होकर तुम्हें प्रणाम करके बाहर के सुख दुःख से अज्ञानी होकर अंतःसुख में लीन हो जाता हूँ। ।।६४।। आशे! त्वद्ध्यानचिह्नानि कम्पस्स्वेदोदयस्तथा। रोमाञ्चः कण्ठरोधश्च हर्षाश्रु देहविस्मृतिः।।६५।। हे आशे! कम्पन, पसीना आना, रोमांच, कंठ का अवरुद्ध होना, हर्ष से आँसू निकलना तथा अपने शरीर तक का ज्ञान नहीं रहना ये सब तुम्हारे ध्यान के चिह्न हैं। ।।६५।। भजामि श्रद्धया नित्यं सुप्रसिद्धां महेश्वरीम्। आशे! त्वां सुन्दरास्यां वै प्रसन्नां परदेवताम्।।६६।। हे आशे! तुम देवियों में प्रसिद्ध परादेवी हो, मैं सदा श्रद्धापूर्वक तुम्हारे सुन्दर मुस्कराते हुये मुख का ध्यान करता हूँ। ।।६६।।। सकलागमरूपां वै चिदानन्दप्रदायिनीम्। प्रेमासक्तस्सदैवाशे! त्वां याचेऽहं शिवाप्तये।।६७।। हे आशे! तुम सकल आगम रूपा, ज्ञानरूप आनन्द को देनेवाली हो, मैं तुम्हारे प्रेम में सदा आसक्त रहता हूँ तथा तुम से मोक्षप्राप्ति की याचना करता हूँ। ।।६७।। आशे! ते पादयुग्मं तु सास्त्रातुमलं भयात्। संसारे तापतप्तानां शरणं परमाद्भुतम्।।६८।। हे आशे! संसार में त्रिविध दुःखों से तप्तों की तुम अद्भुत शरण हो, सभी प्रकार के भय से रक्षा के लिये तुम्हारे चरण की सेवा पर्याप्त है। ।।६८।। आशे! त्वां हि नमस्कृत्य सर्वसौभाग्यदायिनीम्। क्षणादेव चिदानन्दे लीनं मे जायते मनः।।६९।। हे ! सभी तरह के सौभाग्य देनेवाली आशा ! तुम को तुमको नमस्कार करने पर मेरा मन क्षणभर में ही चिदानन्द में मग्न हो जाता है। ।।६९।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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