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________________ 22 का अभिलाष करती है । सिद्धान्त स्तव के फल सर्व ज्ञात है । जिन प्रणित सिद्धान्त, प्रभाव सम्पन्न है । देवेन्द्र उपपात अध्ययन के पाठ से इन्द्र हाजिर होता है | संघ के कार्य के लिये उत्थानश्रुत के पाठ से गाँव को उद्वासित किया जा सकता है। समुत्थानश्रुत से उद्वासित गाँव को पुनः वासित कर सकते है । जिन प्रणित सिद्धान्त तत्काल फलदायी है । उदाहरण के तौर पर - एक नगर के तालाब में एक बड़ा देवताधिष्ठित कमल था । उसको कोई ले नहीं सकता था । राजा ने घोषणा की - 'जो इस कमल को ला कर देगा उसके धर्म का मैं स्वीकार करूँगा' । अन्य धर्मी निष्फल हुए । मन्त्री ने जैन साधु को बुलाया । जैन साधु सचित्त जल को स्पर्श नहीं करते । उन्होंने कमल को तीन प्रदक्षिणा दी । तालाब की पाली पर खड़े रहकर ही पुण्डरीक अध्ययन का पाठ किया । कमल सहसा उछल के राजा की गोद में पड़ा । राजा जैन बन गया । इस श्लोक के पूर्वार्ध में जिनप्रभव विशेषण के माध्यम से कवि ने अपना नाम गुप्त रूप से बताया है । गुप्तता का कारण औद्धत्य का परिहार है । १. मूल की पुष्पिका - इस प्रकार सिद्धान्त स्तवन समाप्त हुआ । संवत् १५१४ में फाल्गुन सुद १५ के दिन चम्पावती नगरी में तपागच्छाधिराज श्रीश्रीश्री सोमसुन्दरसूरि के शिष्याधिराज श्रीविशालराजसूरि के शिष्यो में शिरोरत्न (श्रेष्ठ) पण्डित मेरुरत्नगणि के शिष्य सिद्धान्तसुन्दर ने यह प्रत लिखी । अवचूर्णि की पुष्पिका - इस प्रकार भट्टारक प्रभु श्रीविशालराजसूरि के शिष्य पण्डित सोमोदय गणि रचित श्री सिद्धान्त स्तव की अवचूर्णि समाप्त हुई । संवत् १५१४ में चैत्र वदि १ के दिन गुरु श्री श्री श्री पण्डित मेरुरत्नगणि के शिष्य सिद्धान्तसुन्दर ने यह प्रत लिखी ।
SR No.009264
Book TitleSarva Siddhanta Stava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhasuri, Somodaygani
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages69
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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