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________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् १३३ अशुभ, अयश, असात ए ६ प्रकृति न बांधई अनइ आहारक शरीर अंगोपांग २ ए बि प्रकृति अधिकी बांध । जइ देवतानउं आऊखुं प्रमत्ति बांधिउं हुई तउ ५८ प्रकृति बांधइ । निवृत्ति बादर गुणठाणाना सात भाग कीजइं । पहिलइ भागि अट्ठावनजि बांधई आगिले पांचे भागे निद्रा, प्रचला न बांधई तेह भणी ५६न बंध | सातम भाग देवगति १ देवानुपूर्वी २ पंचेंद्रिय जाति ३ शुभविहायोगति ४ त्रस ५ बादर ६ पर्याप्त ७ प्रत्येक ८ स्थिर ९ शुभ १० सुभग ११ सुस्वर १२ आदेय १३ वैक्रियशरीर १४ वैक्रियअंगोपांग १५ आहारक शरीर १६ आहारकअंगोपांग १७ तैजस १८ कार्मण शरीर १९ समचतुरस्रसंस्थान २० निर्माण नाम २१ जिन नाम २२ वर्ण २३ गंध २४ रस २५ स्पर्श २६ अगुरुलघु २७ उपघात २८ पराघात २९ उच्छ्वास ३० ए त्रीस प्रकृति न बांधई थाकती २६ बांधइ। अनिवृत्ति बादर गुणठाणाना पांच भाग कीजइ । पहिलइ भागि हास्य १ रति २ जुगुप्सा ३ भय ४ ए च्यारि न बांधई बीजी बावीस प्रकृति बांधई। बीजइ भागि पुरुषवेद वर्जी २१ बांधई । त्रीजइ भागि संज्वलन क्रोध टाली २० बांधई । चउथई भागि संज्वलन मान टाली १९ बांधई। पांचमइ भागि संज्वलन माया टाली १८ बांधई। सूक्ष्मसम्पराय गुणठाणइ संज्वलन लोभवर्जी १७ बांधई । उपशांतमोह गुणठाणइ चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन, उच्चैर्गोत्र, यशोनाम, पांच ज्ञानावरण, पांच अंत्राय, ए सोल प्रकृति न बांधई। एक साता वेदनीय कर्मप्रकृति बांधई । क्षीणमोह अनइ सयोगि गुणठाणइ एहजि एक सातवेदनीय बांध | अयोगि गुणठाणइ एकइ प्रकृति न बांधई । नारकी अनइ देवहुइ पहिली च्यारि गुणठाणां हुई। मिथ्यात्व गुणठाणइ नारकी १२० (१००) प्रकृति बांधइं। देवगति १ देवानुपूर्वी २ देवतानुं आऊखु ३ नरकगति ४ नरकानुपूर्वी ५ नरकनउं आऊखु ६ वैक्रियशरीर (७), वैक्रिय अंगोपांग ८ आहारक शरीर ९ आहारक अंगोपांग १० सूक्ष्म ११ अपर्याप्त १२ साधारण १३ एकेंद्रियजाति १४ बेंद्रिय १५ तेंद्रिय १६ चउरिंद्रिय जाति १७ स्थावर १८ आतप १९ जिननाम कर्म ए २० प्रकृति न बांधइ। जेह भणी नारकी मरी वली नारकी न थाइ, देव अनइ एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय पुण न थाई । देवहुर्इं एतलउ विशेष - देव मिथ्यात्व गुणठाणइ एकेंद्रिय १ थावर २ आतप ३ त्रिणि प्रकृति अधिकी बांधइ, बीजी वीस न बांधई, तेह भणी १०३ प्रकृति हुई । देव कल्पद्रुम - रत्नादिकनइ मोहि मरी एकेंद्रियमांहि ऊपजइ । सास्वादन गुणठाणइ नारकी अनइ देव ९६ अथवा ९४ प्रकृति बांधइ । नपुंसकवेद, मिथ्यात्व, हुंडसंस्थान, सेवार्त संघयण ए च्यारि न बांधइ । मिश्र गुणठाणइ देव अनइ नारकी ७० प्रकृति बांधइ । अनंतानुबंधिया च्यारि, ऋषभ नाराचादि ४ संघयण च्यारि, न्यग्रोधपरिमण्डलादि संस्थान ४, अशुभ विहायोगति १३, नीचैर्गोत्र १४, स्त्रीवेद १५, दुर्भग १७(१६), दु:स्वर १८ (१७) अनादेय १९ (१८) निद्रानिद्रा १९ प्रचलाप्रचला २० स्त्यानर्द्धि १२(२१) उद्योत २२ तिर्यग्गति २३ तिर्यगानुपूर्वी २४ तिर्यगायु २५ मनुष्यायु २६ ए छवीस प्रकृति न बांध । अविरत गुणठाणइ नारकी अनइ देव २२ प्रकृति बांधइ । जेह भणी जिन नाम कर्म अनइ मनुष्यनुं आऊखुं ए बि प्रकृति अधिकी बांधइ। इम तेरे थानके उत्तरप्रकृतिनउ बंध विचारिउ । जेहे कारण जीवकर्म बांधइ ते कर्मबंधना कारणनउ विचार लिखीइ छ । पहिलउं कर्मबंधनउं कारण मिथ्यात्व कहीइ। तेहना पांच भेद । 'माहरउजि दर्शन रूडउ बीजउ कांई नही' इसिउ आपणा दर्शननुं कदाग्रह ते अभिग्रहिक मिथ्यात्व कही । मिथ्याशास्त्रना भणनहार ब्राह्मणादिकनी परि १। जेहनउ इसिउ अभिप्राय‘सघलाइ दर्शन रूडां, सर्वे धर्म भला' इत्यादि ते अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व कहीइ । मध्यस्थमानी मिथ्यात्वी गोपालादिकनी परि २। जे अहंकार करी काई आपणउ मत थापर जमालि-गोष्ठामांहिलनी परि ते अभिनिवेश मिथ्यात्व कहीइ ३। कूडीनइ साचीइ वस्तुनउ निश्चउ न जाणइ तीणइ करी साचाइ जीवाजीवादिक पदार्थन विषइ सन्देह आणइ। ‘न (साचउ कि न कुडउ) इ कि कूडउं' इत्यादि ए स्यांशयिक मिथ्यात्व । अजाण जीवहुई हुई पांचमउं अनाभोगिक मिथ्यात्व सर्व गहलरूप अचेतन एकेंद्रियादिकहई हुई ५। ए पांच भेद मिथ्यात्व
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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