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________________ परिशिष्ट-१ ।। मनःस्थिरीकरणप्रकरणमूलमात्रम्।। नमिऊण वद्धमाणं, चलस्स चित्तस्स किंचि थिरकरणं। सपरोवयारहेउं गुरूवएसेण वोच्छामि।।१।। कम्मस्स खवणहेऊ, परमो झाणं जिणेहिं निद्दिट्ठो। झेयं च तत्तनवगं, तत्थवि जियतत्तमाइतओ।।२।। पुढवीजलग्गिमरुतरुबितिचउखदुविहपणिदितिरिएसुं। मणुनिरसुरेसु झायसु, जियगुणठाणाइ जीवगुणे।।३।। जियगुणठाणा जोगोवओग तणु लेस दिछि पज्जत्ति। पाणाउ आगइगई, कुल जोणी वेय कायठिई।।४।। संघयणं संठाणावगाह मूलियरपयडिबंधदुर्ग। समुघाय दुविहहेऊ, कसाय इइ झेयपणवीसा।।५।। तत्थ वि गुणउवओगा, दिट्ठी मुण सुत्तकम्मगंथेहिं। आउठिई कायठिई वगाहकम्माणि लहुगुरुत्तेहिं।।६।। उत्तरपयडि तह दुह, हेऊ य कसाय पड्गुणं चउरो। चउदस उड्डाहगिहा, मंगलपुढवीजलाईया।।७।। मंगल जियगुणमाई, तिरियं पणतीस जं तिहवगाहो। अडमूलपयडिएगं, मूलगिहं सेस तेवीसा।।८।। इय भूमिपट्टगाइसु, जंतं लिहिऊ पडं व ठविऊणं। तो गिहअंके दितो, चिंतेतो वा सरसु सुत्तं ।।९।। जियठाणा सुहमेयरइगिंदिबितिचउपणिंदिसन्नियरा। पज्जअपज्जा चउदस, अपज्ज दुह लद्धिकरणेहिं।।१०।। जं निरसुरमिहणेसुं, जियठाणदुगं पएँ पए भणियं। न य ते लद्धिअपज्जा, तो इह अपज्जत्त दुविहावि।।११।। नियनियपज्जत्तीणं, अंतं एहिति न पुण ता पत्ता। ते करणे अपजत्ता, जे उण नियनियपजत्तीणं।।१२।। अंतं न जंति अंतरमरंति ते हंति लद्धिअपजत्ता। नियनियपज्जत्तिअंतं, जे पत्ता ते उ पज्जत्ता।।१३।। आइमचउएगिदिसु, नियनियजियट्ठाण दु दुगविगलमणे। तिरिनिरयसुरंतदुर्ग, नरि अंतदुगं तहेक्कारं।।१४।। गुणमिच्छसाणमीसा, अविरयदेसा पमत्तअपमत्ता। नियट्टिअनियट्टिसुहमोवसंतखीणा सजोगियरा।।१५।। सुत्ते मिच्छमिगिदिसु, गुणदुग भूदगवणेसु कम्मइगा। दो विगलमणे पणतिरि, नरि चउदस चउर निरयसुरे।।१६।। पनरस जोगा सच्चं, मुसमीसमसच्चमोस मणवयणं। उरलविउव्वाहारा, तम्मिस्सतिगं च कम्मो य।।१७।। कम्मोरल दुगजोगा, तिन्नेगिंदिसु विउव्विदुगजुत्ता। पण मरुसु बि विगलमणे, कम्मुरलदुगं वई तुरिया।।१८।। आहारदुर्ग वजिय, तेरस तिरिएसु पनरस नरेसु। उरलदुगाहारदुर्ग, वज्जिय एक्कार निरयसुरे।।१९।। नाणं पंचविहं तह, अन्नाणतिगं च अट्ठ सागारा। चउदंसणमणगारा, बारस जियलक्खणुवओगा।।२०।। अन्नाणदुगमचक्खुदसण एगिदि तिन्नि उवओगा। मइसुयनाणअनाणा, अचक्खु इय पंच दुतिकरणे।।२१।। एए सचक्खुदंसा, चउरिंदि असन्निएसु छच्चेव। नरि बारस केवलदुगमूण नव तिरियनिरयसुरे।।२२।। सुत्ते दुतिकरणाणं, पण पण छ छच्च अमण चउकरणे। कम्म इगा ति ति चउ चउ, नाणदुगुणा जओ तेसिं।।२३।। सासणभावे नाणं, विउव्वगाहारगे उरलमिस्सं। नेगिंदिसु सासाणो, नेहाहिगयं सुयमयंपि।।२४।। उरलविउव्वाहारगतेयसकम्मा तणु त्ति नरि पण वि। नरि पणवि कम्मोरलतेयतिगं अवाउएगिदिविगलमणे।।२५।। मरुतिरि तं सविउव्वं, वेउव्वियतेयकम्म सुरनिरए। (दारं) किण्हा नीला काऊ तेऊ पम्ह सुक्क छल्लेसा।। २६।। आइचउ भूदगवणे, सिहिमरुविगलेसु अमणनिरएसु। आइतिगं तह सन्नी, तिरिमणुदेवेसु छल्लेसा।। २७॥
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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