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________________ कल्पनिर्युक्तिः ली कि, ‘मैं उदात्त कनकवर्णा, सुन्दर रूपवाली और ऐश्वर्यवाली हो जाऊँ ।' उससे वह देवता के समान कामरूपवाली, परावर्तित वेशवाली, उदात्त कनकवर्णवाली, सुन्दर रूपवाली और सुभगा हो गयी । लोगों में चर्चा होने लगी कि देवताओं की कृपा से कृष्णगुलिका कनकवर्णा हो गयी । इसका नाम स्वर्णगुलिका होना चाहिए और वह इसी नाम से प्रसिद्ध हो गयी । गुलिकाओं की अलौकिक शक्ति के प्रति विश्वास उत्पन्न हो जाने पर उसने एक गुलिका मुख में रखकर कामना कियी कि, 'प्रद्योत राजा मेरे पति हों ।' १०२ वीतभय से उज्जयिनी अस्सी योजन (३२० कोस ) दूर होने पर भी अकस्मात् राजसभा में राजा प्रद्योत के सम्मुख एक पुरुष यह कथा कहने लगा, "वीतिभय नगर में देवता द्वारा अवतारित प्रतिमा की सेविका कृष्णगुलिका देवकृपा से स्वर्णगुलिका हो गई है । अत्यधिक सौभाग्य तथा लावण्य से युक्त वह बहुत से लोगों द्वारा पार्थित की जाने लगी है।" वार्ता सुनकर प्रद्योत ने स्वर्णगुलिका को पाने हेतु उदायन के पास दूत भेजा कि, "इसे स्वर्णगुलिका के साथ वापस करो।' दूत के पहुँचने पर उदायन ने यथोचित सत्कार नहीं किया । अपने प्रस्ताव का अनुकूल उत्तर न मिलने पर प्रद्योत ने युद्धदूत भेजा कि, "यदि स्वर्णगुलिका को नहीं भेजोगे तो युद्धार्थ आ रहा हूँ !" वह दूत स्वर्णगुलिका से भी मिला । उसने कहा, “यदि प्रतिमा वहाँ जायेगी तभी मैं जाऊँगी, अन्यथा नहीं जाऊँगी।" दूत के लौट आने पर प्रद्योत अपने हाथी-रत्न अनलगिरि पर सवार होकर युद्ध के लिए सुसज्जित हो, कवच धारण कर गुप्त रूप से प्रदोषवेला में (प्रदोष समये) नगर में प्रविष्ट हुआ। वहाँ वसन्त काल में कृत्रिम प्रतिमा निर्मित करवाकर, उसे सजाकर उच्चस्वर में गीत गाते हुए देवतावतारित प्रतिमा लाने के लिए राजभवन में निर्मित मन्दिर में प्रविष्ट हुआ । छल से कृत्रिम प्रतिमा को मन्दिर में स्थापित किया और देवतावतारित प्रतिमा का हरण कर प्रद्योत चला गया । जिस रात अनलगिरि वीतिभय नगर में प्रविष्ट हुआ, गन्धहस्ति के गन्ध से उसके प्रवेश के विषय में लोगों को ज्ञात हो गया । महामन्त्री ने विचार किया, 'निश्चय ही अनलगिरि हाथीस्तम्भ नष्ट कर आया हुआ है अथवा दूसरा कोई वनहस्ती आया हुआ है ।' प्रातःकाल अनलगिरि के आने के लक्षण दिखाई पड़े । राजा को बताया गया कि प्रद्योत आकर वापस चला गया । स्वर्णगुलिका की खोज करवाने पर ज्ञात हुआ कि उसके निमित्त ही प्रद्योत आया था । मन्दिर में विद्यमान प्रतिमा की सत्यता की परख के लिए तथा यह देवतावतारित प्रतिमा है या उसकी प्रतिमूर्ति यह जानने के लिए उस पर पुष्प रखे गये । मूल प्रतिमा के गोशीर्षचन्दन की शीतलता के प्रभाव से पुष्प मलिन नहीं होते थे । राजा स्नान करने के पश्चात् मध्याह्न में देवायतन गये और पूर्व कुसुमों को म्लान हुआ देखकर राजा ने जान लिया, 'मूल प्रतिमा का हरण हो गया है ।' क्रोधित उदायन ने चण्डप्रद्योत के पास दूत भेजा कि, 'दासी को भले ही हर ले गये किन्तु प्रतिमा
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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