SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 724
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुंथ अरह और मल्लि मुनिसुव्रत, नमिनाथ महाराज की जय | महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय | Kuntha araha aura malli munisuvrata, naminātha mahārāja kī jaya | Mahārāja kī śrī jinarāja kī, dīnadayāla kī āratī kī jaya | नेमिनाथ प्रभु पार्श्व जिनेश्वर, वर्द्धमान महाराज की जय | महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय | Nēminātha prabhu pārśva jinēśvara, varddhamāna mahārāja kī jaya | Mahārāja kī śrī jinarāja kī, dīnadayāla kī āratī kī jaya | इन 'चौबीसों की आरती करके, आवागमन-निवार की जय | महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय | Ina caubīsōm kī āratī karakē, āvāgamana-nivāra kī jaya | Mahārāja kī śrī jinarāja kī, dīnadayāla kī āratī kī jaya | अन्य उपयोगी पाठ्य सामग्री Anay Upyogi Paathya Samgri दिगम्बर जैन मुनि Digambara Jaina Muni तत्ववेत्ताओं ने साधुओं के लिए लिखा है कि 'मुनि' यथाजात रूप है | जैसा जन्मजात बालक नग्नरूप होता है, वैसा नग्नरूप दिगम्बर मुद्रा का धारक है, वह अपने मन के भावों से, अपनी वाणी से, व शरीर के किसी भी अंग से तिलतुषमात्र भी परिग्रह ग्रहण नहीं करता, यदि वह कुछ भी ग्रहण कर ले तो निगोद में जाता है | परिग्रही के लिए आत्मोन्नति की पराकाष्ठा पा लेना असंभव है | जिन शासन में जैनाचार्यों ने लिखा है कि वस्त्रधारी मनुष्य मुक्ति नहीं पा सकता है; चाहे वह कोई हो, मुनिदीक्षा लेकर ही मुक्ति की प्राप्ति कर सकते हैं | नग्नत्व ही मोक्षमार्ग है; शेष सब मार्ग उन्मार्ग हैं | 724
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy